छन गया जीवन भी वक़्त की ही तरह
अपने हाथों से सँभाला न गया
मिट गए दुनिया की खातिर
मगर तन्हाई का निवाला न गया
स्याह रातों में दिल जला कर ही सही
राह से उम्मीद का उजाला न गया
अपनी दुनिया भी अजब सलमे-सितारों है जड़ी
जीते जी सर से दुशाला न गया
दुहाई दे दे कर कहते रहे
खुद के होने का हवाला न गया
हिन्दयुग्म से बैरंग लौटी मेरी रचना ,...
जीने की आरजू ने हर गम भुला दिया
रोये बहुत थे हम मगर , चाहत को सुला दिया
भारी पड़ता है इश्क तो गमे-रोज़गार पर
न हवा निवाला बनती , क्या पी के जी रहते
उतरे जो हम जमीं पर , टुकड़ों ने सिला दिया
जीने की आरजू ने हर गम भुला दिया
दबी सी हैं चिंगारियाँ कुछ राख के तले
न हवा कभी चलती , न कभी वो लपटें उठतीं
होती जो कभी आहट , उसने ही क्या कुछ हिला दिया
जीने की आरजू ने हर गम भुला दिया
अश्कों में ढला गम तो गीतों में सज गया
जब कुछ न रहा बाकी , तो कुछ बन के आ गया
लो इसने आज भी , जीने की वजह से मिला दिया
जीने की आरजू ने हर गम भुला दिया
ढूँढा बहुत तुझे ऐ दोस्त अपनों के लग गले
तुझे कुछ सुनाई नहीं देता , तन्हाई में भी कितना शोर पले
मर्जी उसकी है , वक़्त से हाथ मिला लिया
जीने की आरजू ने हर गम भुला दिया
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खुरदरे सफ़र ने मिटा दिए ' गर , लेकिन '
चिकनी सतह पर नहीं टिकता कुछ भी
ज़िन्दगी तेज चली खुशनुमा सफ़र में तो
भारी वक़्त जैसे रेंग कर रुक गया हो अभी
सारी साजिशें हैं मिट्टी में मिला देने की
कुछ बच रहूँ तो निशाँ बोलें कभी
फ़ना होता है जब भी कोई
जादुई से टुकड़े बोल उठते हैं सभी
गुजर गया कारवाँ तो
धडकनों का सबब बाकी अभी
सफ़र के हिचकोलों में दोहरे हुए
गोल हुए , तराशे गए हैं सभी