कि बुत हो जाऊँ
तराशे गए हैं अक्स भी
मैं भी सो जाऊँ
सर्द आहों से पलट
जमाने की हवा हो जाऊँ
रूह को छू ले जो
रकीबों सी दुआ हो जाऊँ
कब बदलता है कोई
मैं ही काफिर हो जाऊँ
दर्द किसको नहीं होता
जुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...
रूह को छू ले जो
जवाब देंहटाएंरकीबों सी दुआ हो जाऊँ
बहुत अच्छे भाव। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बुत क्यों बनना जी ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
इतना चुप हो जाऊँ
जवाब देंहटाएंकि बुत हो जाऊँ
दिल को छू लेने वाली रचना, बधाई
bhav ek se hai bas likhne ka andaaz alg alg hai...
जवाब देंहटाएंbahut accha likha hai aapne
रूह को छू ले जो
जवाब देंहटाएंरकीबों सी दुआ हो जाऊँ
बहुत सुन्दर शेर है। रूह को छू लिया।
बुत खामोश होता है पर हम खामोश क्यों हों
जवाब देंहटाएंगजल बहुत अच्छी है
bahut badiya gahre bhav liye aapke ye sher bahut pasand aae .
जवाब देंहटाएंAabhar
bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंतराशे गए हैं अक्स भी...मैं भी सो जाऊँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
रूह को छू ले जो...रकीबों सी दुआ हो जाऊँ
वाह...वाह....अच्छी रचना...बधाई.
बुत आप हो गयी तो
जवाब देंहटाएंकविता कौन लिखेगा
आप का जो कर्म है
वो पूरा कौन करेगा..
छोडो ये हवा हो जाने की बाते..
अब के काम पुरे न किये तो
अगले जन्म फिर भरना पड़ेगा..
हा.हा.हा.
शारदा जी जरा सोचिये...
सुंदर अभिव्यक्ति. :)
बहुत कुछ हो जाने की उम्मीदों पर एक बेहतर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंक्या आप भारतीय ब्लॉग संकलक हमारीवाणी के सदस्य हैं?
जवाब देंहटाएंहमारीवाणी पर ब्लॉग पंजीकृत करने की विधि
इतना चुप हो जाऊँ
जवाब देंहटाएंकि बुत हो जाऊँ
तराशे गए हैं अक्स भी
मैं भी सो जाऊँ
बहुत अच्छी लगी आपकी ये प्रस्तुति
"इतना चुप हो जाऊँ
जवाब देंहटाएंकि बुत हो जाऊँ"
बहुत अच्छी पंक्तियां लगीं।
वैसे, न बोलना ही बुत होने का पैमाना है क्या?
अनामिका जी ,
जवाब देंहटाएंआपने कहा ,
बुत आप हो गयी तो कविता कौन लिखेगा आप का जो कर्म है वो पूरा कौन करेगा॥छोडो ये हवा हो जाने की बाते..अब के काम पुरे न किये तो अगले जन्म फिर भरना पड़ेगा..
अच्छा लगा , चलिए बताती हूँ कि मैंने ये क्यों लिखा , बुत यानि जो बाहरी हलचल से हिले न , और ये तभी हो सकता है जब जिस्म और जान के अहसास से जुदा होऊं ...तभी न , दर्द इतना गहरा असर न रखेगा , यूँ बाहर ही फिसल कर रह जाएगा ।
सब टिप्पणी कर्ताओं का शुक्रिया ,जिन्होंने इतने प्यार से पढ़ कर प्रतिक्रिया के लिये वक्त निकला ।
बहुत ही खुबसूरत..............सूफियाना ढंग..................उस विराट का एक अंश मात्र ..........जहाँ तक मुझे लगा यहाँ बुत का मतलब बुद्ध जैसी समाधि से है ......... सुन्दर रचना.......शुभकामनाये|
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता है...
जवाब देंहटाएंकब बदलता है कोई
मैं ही काफिर हो जाऊँ
दर्द किसको नहीं होता
जुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
कितने कम लफ्ज़ .. कितने गहरे जज्बात ... बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंशारदा दीदी, आपने तो कमाल कर दिया ग़ज़ल में. यद्यपि बुत हो जाना हल नहीं है मगर आज हालात के नाकाबिले बर्दाश्त दर्द, इंसान को कभी कभी 'बुत' हो जाने की तमन्ना रखने पर मजबूर कर देते हैं. . . तमाम शेर कमाल हैं. शुक्रिया एक बेहतरीन रचना के लिए.
जवाब देंहटाएंगहरे जज्बात.....शुक्रिया एक बेहतरीन रचना के लिए.
जवाब देंहटाएंदर्द किसको नहीं होता
जवाब देंहटाएंजुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
सुन्दर और सरल
बंधाई स्वीकारें
क्या बात है, बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंदर्द किसको नहीं होता
जवाब देंहटाएंजुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
...गहरे जज्बात ... सुन्दर रचना
sharda ji ,
जवाब देंहटाएंek bahut hi khoobsurat rachna jo dil ko choo gai.
poonam