फूलों में उलझे तो पड़ते नहीं हैं पाँव ज़मीं पर
काँटों में उलझे तो , ज़मीं बचती ही नहीं है क़दमों तले
ज़िन्दादिली तो हिन्दी में भी छलकती है
ये वो भाषा है जो ज़रुरी है सीखने के लिये
बहुत चाहा कि लिखूँ खुशियों पर , हैरानियों पर
बेबसी , वीरानियों की सौगात हैं मेरी नज्में
है प्रीत जितनी गहरी , है टीस भी उतनी ही गहरी
जो चलाता है फूलों पर , वही छोड़ जाता है काँटों के बिस्तर कने
ज़िन्दगी जलाती है तो राख के ढेर में बचाती इतना
कलम कागज़ थमा कर , दुनिया भर को सुनाती अफ़साने अपने
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...
शुक्रवार, 25 नवंबर 2011
रविवार, 20 नवंबर 2011
वक्त ने हमको चुना
वक्त ने हमको चुना
चोट खाने के लिये
मंज़िलें और भी हैं
राह दिखाने के लिये
कौन जीता है भला
गम उठाने के लिये
वक़्त आड़ा ही सही
साथ बिताने के लिये
रफू करना कला है
जिन्दगी बचाने के लिये
उधड़ गए तो सिले
गले लगाने के लिये
हिला रहा है कोई
हमको जगाने के लिये
उठो , अहतराम कर लो
ताल मिलाने के लिये
चोट खाने के लिये
मंज़िलें और भी हैं
राह दिखाने के लिये
कौन जीता है भला
गम उठाने के लिये
वक़्त आड़ा ही सही
साथ बिताने के लिये
रफू करना कला है
जिन्दगी बचाने के लिये
उधड़ गए तो सिले
गले लगाने के लिये
हिला रहा है कोई
हमको जगाने के लिये
उठो , अहतराम कर लो
ताल मिलाने के लिये
शुक्रवार, 11 नवंबर 2011
अदब के शहर में ( लखनऊ के लिये )
बच्चों की किसी फ्रेंड ने फेसबुक पर लिखा ...मुस्कुराइए के ये लखनऊ है ...बस यहीं से इस रचना का जन्म हुआ ....
मुस्कुराइए के ये अदब है
अदब के शहर में अदब से पेश आइये
ये वो शहर है , अजनबी भी
लगता अपना सा ही , जान जाइए
मुहब्बतों में नहीं होता तेरा मेरा
सुकून दिल का पहचान जाइए
मन्जिल भी सबकी एक ही है
राहों का पता जान जाइए
वफ़ा की वादियों में चलना है
तहज़ीबे-इश्क पर परवान जाइए
गुलाबी रँगत है , तहज़ीबे गँगा-जमनी
झुका के सर कुर्बान जाइए
आए हैं सैर को नवाबों के शहर में
गुलाबों की तरह यूँ मुस्कुराइए
लगा के देखिये चेहरे पे दो इँच चौड़ी मुस्कान
जिगर में उतर कर , राह चलतों को अपना बनाइये
अदब के शहर में अदब से पेश आइये
ये वो शहर है , अजनबी भी
लगता अपना सा ही , जान जाइए
मुहब्बतों में नहीं होता तेरा मेरा
सुकून दिल का पहचान जाइए
मन्जिल भी सबकी एक ही है
राहों का पता जान जाइए
वफ़ा की वादियों में चलना है
तहज़ीबे-इश्क पर परवान जाइए
गुलाबी रँगत है , तहज़ीबे गँगा-जमनी
झुका के सर कुर्बान जाइए
आए हैं सैर को नवाबों के शहर में
गुलाबों की तरह यूँ मुस्कुराइए
लगा के देखिये चेहरे पे दो इँच चौड़ी मुस्कान
जिगर में उतर कर , राह चलतों को अपना बनाइये
बुधवार, 2 नवंबर 2011
छाया का गिला है
अपने जैसा कोई
नहीं मिला है
सुख की कोई
आधार शिला है
हर कोई तन्हा
बहुत हिला है
किस काँधे पर
आराम मिला है
चिन्गारी है
आग सिला है
धूप है हर सू
छाया का गिला है
दिल दहला और
मौसम खिला है
सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है
नहीं मिला है
सुख की कोई
आधार शिला है
हर कोई तन्हा
बहुत हिला है
किस काँधे पर
आराम मिला है
चिन्गारी है
आग सिला है
धूप है हर सू
छाया का गिला है
दिल दहला और
मौसम खिला है
सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है