कैसे कह दें के है इन्तिज़ार नहीं
कौन खुशियों का तलबगार नहीं
दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
न कहना के है कोई खरीदार नहीं
तुम्हीं तो छोड़ गई हो ऐ जिन्दगी यहाँ मुझको
तुम्हें गुरेज है हमसे प्यार नहीं
बदल गए हैं मायने कितने ही
तन्हाई भी है क्या गमे-यार नहीं
कर लेते हम हालात से समझौता
जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं
उसकी बातों में बला का जादू है
यूँ ही दुनिया का दारोमदार नहीं