भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...
रविवार, 4 जनवरी 2009
अपने जैसे दिलों को दिल पहचान लेता है
दिल में जगह रख कर मिलते हैं फ़िर भी
क्यों साथ चलना इन्हें गवारा नहीं होता
आड़े आ जाती है आन , बान और शान
जिसका खोना या कम होना , इन्हें गवारा नहीं होता
_अपने जैसे दिलों को दिल पहचान लेता है
बड़ी मुश्किल से राहें साथ चलती हैं
राहों को सजा ले तू , राहों का ठिकाना नहीं होता
_वो जो जन्मों से प्यासे हैं
समा जाते हैं जानों में , राहों की रज़ा बनकर
रज़ाओं का ठिकाना नहीं होता
_मुसाफिरी है तेरी भी मेरी भी
हाथों में पकड़ ले हाथ , झूठे आसरे , आडम्बर
सहारों का भरोसा नहीं होता
अपने जैसे दिलों को दिल पहचान लेता है
अपने जैसे दिलों को दिल पहचान लेता है
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ...
बहुत ही सही कहा आपने..अच्छा लगा पढ़ कर...
जवाब देंहटाएं