सोमवार, 4 अक्टूबर 2010

हसरतों की देहरी पर

हसरतों की देहरी पर तुम
पाँव रखना सोच कर


है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर


है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर


लग गया जो दिल तो फिर
निभाना सीना ठोक कर


बेवफा निकलें जो सपनें
ये भी रखना सोच कर


होगा कहाँ अपना ठिकाना
खुद को पूछो रोक कर


मन्जर भी हैं मंजिल ही
देखो तो ये सोच कर


सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर

16 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत भावों से सजी प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. बड़ी हकीकत पसंद बातों पे गज़ल कही आपनें !

    जवाब देंहटाएं
  3. मन्जर भी हैं मंजिल ही
    देखो तो ये सोच कर

    बहुत ही सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  4. मन्जर भी हैं मंजिल ही
    देखो तो ये सोच कर
    सफ़र के सजदे में तुम
    सिर झुकाना , माथा ठोक कर

    Kamaal kaa likha hai!

    जवाब देंहटाएं
  5. हसरतों की देहरी पर तुम
    पाँव रखना सोच कर

    यही तो नहीं हो पाता

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही खूबसूरत अलफाजोँ को चुना हैँ आपने गजल मेँ। गजल मेँ शेरोँ की रिदम अभिभूत करने वाली हैँ। एक से बढ़कर एक लाजबाव शेर प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर ........पर अगर हर काम सोच कर ही किया तो फिर दिमाग हमेशा दिल पर हावी रहता है |

    जवाब देंहटाएं
  8. दिल और दिमाग का ही तो सारा झगड़ा है , हमेशा दिल का ही कबाड़ा होता है , तो समझाना भी तो दिल को ही पड़ेगा कि ...भाई समझदारी से काम ले , वरना चारों खाने चित्त हो जाएगा ।
    दिल दिमाग का सामंजस्य ही तो संतुलन है , मगर समझ बहुत चोट खाने के बाद आती है ।

    जवाब देंहटाएं
  9. सफर के सजदे मे
    तुम सिर झुकाना माथा ठोंक कर
    उमदा रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. हसरतों की देहरी पर तुम
    पाँव रखना सोच कर.....
    शुरूआत ही इतनी उम्दा है....
    है कहाँ आसान इतना
    आना अपना लौट कर
    है बहुत मगरूर इंसाँ
    दिल लगाना सोच कर...
    बहुत अच्छी रचना लगी...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  11. हसरतों की देहरी पर तुम
    पाँव रखना सोच कर....

    पर पाँव रखते हुवे कौन सोचता है .... ये तो जब सहना पढ़ता है तभी समझ आता है ... अच्छा लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  12. सब कुछ सोच कर ही होता तो फिर बात ही क्या थी.
    सुंदर अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं

मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं