तुझ में खुदा है , मुझ में खुदा है
कहाँ नहीं है खुदा , ये बता
पर मेरा मन क्यूँ ख़फा है
ख़फा है , ख़फा है , ये बता
बरसता सावन , उगता सूरज , ढलती शामें
वो सारी दुनिया का मालिक
मेरी हस्ती उस से जुदा है
जुदा है , जुदा है , ये बता
गहरी खाई , टूटा दिल है , निपट अकेला
उजला देखूं , रब है , रब है
झूम के गाऊँ , ये भी बदा है
बदा है , बदा है , ये बता
तुझ में खुदा है , मुझ में खुदा है
कहाँ नहीं है खुदा , ये बता
पर मेरा मन क्यूँ ख़फा है
ख़फा है , ख़फा है , ये बता
कहाँ नहीं है खुदा , ये बता
पर मेरा मन क्यूँ ख़फा है
ख़फा है , ख़फा है , ये बता
बरसता सावन , उगता सूरज , ढलती शामें
वो सारी दुनिया का मालिक
मेरी हस्ती उस से जुदा है
जुदा है , जुदा है , ये बता
गहरी खाई , टूटा दिल है , निपट अकेला
उजला देखूं , रब है , रब है
झूम के गाऊँ , ये भी बदा है
बदा है , बदा है , ये बता
तुझ में खुदा है , मुझ में खुदा है
कहाँ नहीं है खुदा , ये बता
पर मेरा मन क्यूँ ख़फा है
ख़फा है , ख़फा है , ये बता
क्यूंकि शायद खुदा हामरे इतने करीबा है कि हम सदा ही उसे खफ़ा ही रहते हैं इसलिए मन भी ज़्यादातर खुद से खफ़ा-खफ़ा ही रहता है। :))
जवाब देंहटाएंसमय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
सच है ईश्वर कण कण में है......
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंख्याल बहुत सुन्दर है और निभाया भी है आपने उस हेतु बधाई,
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