ऐसे उठ आये तेरी गली से हम
जैसे धूल झाड़ के कोई उठ जाता है
यादों की गलियों में थे अँधेरे बहुत
वक़्त भी आँख मिलाते हुए शर्माता है
वक़्ते-रुख्सत न आये दोस्त भी
गिला दुनिया से भला क्या रह जाता है
लाये थे जो निशानियाँ वक़्ते-सफर की
रह-रह कर माज़ी उन्हें सुलगाता है
अब मेरे हाथ लग गया अलादीन का चराग
आतिशे-ग़म से भी अँधेरा छँट जाता है
तय होता है लेखनी का सफ़र सफ़्हा-दर -सफ़्हा
मील का हर पत्थर हमें समझाता है
जैसे धूल झाड़ के कोई उठ जाता है
यादों की गलियों में थे अँधेरे बहुत
वक़्त भी आँख मिलाते हुए शर्माता है
वक़्ते-रुख्सत न आये दोस्त भी
गिला दुनिया से भला क्या रह जाता है
लाये थे जो निशानियाँ वक़्ते-सफर की
रह-रह कर माज़ी उन्हें सुलगाता है
अब मेरे हाथ लग गया अलादीन का चराग
आतिशे-ग़म से भी अँधेरा छँट जाता है
तय होता है लेखनी का सफ़र सफ़्हा-दर -सफ़्हा
मील का हर पत्थर हमें समझाता है
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08 - 10 - 2015 को चर्चा मंच पर
जवाब देंहटाएंचर्चा - 2123 में दिया जाएगा
धन्यवाद
badhiya gazal
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गजल.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मर्सिया गाने लगे हैं
badhiya hai
जवाब देंहटाएंhow to self publish a book in india
बहुत सुंदर गजल.
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