सुनो वीना.... ऐ दोस्त ,तकरीबन साढ़े चार दशकों के बाद तुमसे मिलने का इन्तज़ार , आँखों में बसी उस उम्र की कमनीयता , दिल में बसा वही सौन्दर्य..... उस उम्र में जब मैं दूसरे शहर से स्कूल में नई-नई आई थी , तुम्हारा अपना ग्रुप था ..... तुम , सीता ,अमृत ,आशा गाबा ,निर्दोष , मधु ,कमल ,पुष्पा ,अनीता, सब। कितने अपनत्व से तुम सबने मुझे गले लगा लिया था। वैसा फिर कम ही हुआ। लोग दूसरे के बारे में एक राय कायम किये रहते हैं और एक नट-शैल के अन्दर रहते हैं।
ये तो जानती थी चेहरे अब वैसे नहीं होंगे। उम्र जब दस्तक देती है तो शिकनों की तरह अपनी छाप छोड़ती जाती है। ज़िन्दगी की उदासियाँ ,कड़वाहटें भुलाने के लिये एक अदद दोस्त ही काफी होता है। जब तुम मुझे मिलने आ रहीं थीं देखो मन ने क्या लिखा .....
मुद्दत हुई उस ज़माने से मिले
आओ ऐ दोस्त के कुछ सुकून जैसा मिले
तैरने लगी बचपन की आबो-हवा
ऐसा लगा गुजरे ज़माने से मिले
बड़ी धूप है ऐ दोस्त
सहरा में हर कोई प्यासा ही मिले
आँखें तो ढूँढती हैं ऐ मेरे दोस्त
बहाने की तरह कोई दिलासा सा मिले
दोस्त होते तो टिके रहते
वरना दुनिया में लोग बहुतेरे मिले
तलाशेंगी मेरी आँखें तुम्हारी आँखों में
वही अल्हड़पन जो कहीं दुबारा मिले
कुछ बची होगी हमारे-तुम्हारे बचपन की महक
आ उसी राब्ते को फुर्सत से मिलें
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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं