बुधवार, 26 नवंबर 2025

ऐसी आबो-हवा

कोई हमें चाहता है ये ख़्याल कितना ख़ूबसूरत है 

इससे अपनी दुनिया आबाद कर लेना 


ये छाँव चलेगी तुम्हारे सँग-साथ 

इसे मुट्ठी में क़ैद कर लेना 


ये दुनिया किसी जन्नत से कम नहीं 

इसके सजदे में दिन-रात शादाब कर लेना 


जब भी मिलें नजरें लब पे मुस्कराहट हो 

रिश्तों में ऐसी आबो-हवा रख लेना 


धूप तो आनी-जानी शय है 

किसी काँधे पे रख के सर, थोड़ा आराम कर लेना 

बुधवार, 19 नवंबर 2025

नसीबा लिखने वाला

आँखें भी उसी की हैं , मंज़र भी उसी के हैं 

मरहम भी उसी के हैं , खँजर भी उसी के हैं 


मेरे बोने से है क्या उगता 

हरियाली भी उसी की है ,बंजर भी उसी के हैं 


अब छोड़ दिया उसी पर सब 

कठपुतली से नाचते हम , बंदर भी उसी के हैं 


नसीबा लिखने वाला है वही 

सिकंदर भी उसी के हैं , कलंदर भी उसी के हैं