बुधवार, 19 नवंबर 2025

नसीबा लिखने वाला

आँखें भी उसी की हैं , मंज़र भी उसी के हैं 

मरहम भी उसी के हैं , खँजर भी उसी के हैं 


मेरे बोने से है क्या उगता 

हरियाली भी उसी की है ,बंजर भी उसी के हैं 


अब छोड़ दिया उसी पर सब 

कठपुतली से नाचते हम , बंदर भी उसी के हैं 


नसीबा लिखने वाला है वही 

सिकंदर भी उसी के हैं , कलंदर भी उसी के हैं 

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह , लाज़वाब लिखा आपने।
    सादर।
    -------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ नवंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं