रविवार, 7 अक्टूबर 2012

किसी दोस्त सा चेहरा

वो मिरे साथ चल तो सकता था 
दिल में चाह ने सताया नहीं होगा उतना 

वो मेरी खामियाँ ही निकालता रहा 
मेरे जज़्बे को नहीं देख पाया होगा उतना 

हम अपने हाल को गीतों में ढालते रहे 
ये अश्कों का सफ़र नहीं सता पाया होगा उतना 

जाने ज़िन्दगी क्या माँगती है 
रूह को कौन समझ पाया होगा उतना 

वो मुझे बहुत कुछ दे तो सकता था 
किसी दोस्त सा चेहरा मुझ में नहीं देख पाया होगा उतना 

12 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन उम्दा प्रस्तुति, ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं
    जाने ज़िन्दगी क्या माँगती है
    रूह को कौन समझ पाया होगा उतना

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  2. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो .......

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  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी

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  4. बढ़िया प्रस्तुति .
    किसी दोस्त सा चेहरा

    वो मिरे साथ चल तो सकता था
    दिल में चाह ने सताया नहीं होगा उतना

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  5. हमेशा की तरह लाजवाब रचना शारदा जी बधाई स्वीकारें


    नीरज

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं