वो मिरे साथ चल तो सकता था
दिल में चाह ने सताया नहीं होगा उतना
वो मेरी खामियाँ ही निकालता रहा
मेरे जज़्बे को नहीं देख पाया होगा उतना
हम अपने हाल को गीतों में ढालते रहे
ये अश्कों का सफ़र नहीं सता पाया होगा उतना
जाने ज़िन्दगी क्या माँगती है
रूह को कौन समझ पाया होगा उतना
वो मुझे बहुत कुछ दे तो सकता था
किसी दोस्त सा चेहरा मुझ में नहीं देख पाया होगा उतना
दिल में चाह ने सताया नहीं होगा उतना
वो मेरी खामियाँ ही निकालता रहा
मेरे जज़्बे को नहीं देख पाया होगा उतना
हम अपने हाल को गीतों में ढालते रहे
ये अश्कों का सफ़र नहीं सता पाया होगा उतना
जाने ज़िन्दगी क्या माँगती है
रूह को कौन समझ पाया होगा उतना
वो मुझे बहुत कुछ दे तो सकता था
किसी दोस्त सा चेहरा मुझ में नहीं देख पाया होगा उतना
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन उम्दा प्रस्तुति, ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं
जवाब देंहटाएंजाने ज़िन्दगी क्या माँगती है
रूह को कौन समझ पाया होगा उतना
वहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो .......
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंकिसी दोस्त सा चेहरा
वो मिरे साथ चल तो सकता था
दिल में चाह ने सताया नहीं होगा उतना
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल..
जवाब देंहटाएं:-)
बेहतरीन पंक्तियाँ....
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह लाजवाब रचना शारदा जी बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
bahut bahut dhanyvad...
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