लगता तो नहीं था कि जी पायेंगे तेरे बिन
खिले हुए हैं मगर किसी जख्मे-आरज़ू की तरह
साथी समाँ सामाँ सब फीके हैं
बिन तेरे काँधे फुसलाये हुए हैं बहानों की तरह
कितना जी चुरायें यादों से
ये हमें देखतीं हैं मासूम सवालों की तरह
तलाशती हैं मेरी आँखें वही अपनापन
खो गया जो भीड़ के रेले में किसी साथी की तरह
दूर तो नहीं गये हो तुम भी
मगर खो गये हो ज़िन्दगी की दौड़ में बचपन की तरह
लगता तो नहीं था कि जी पायेंगे तेरे बिन
खिले हुए हैं मगर किसी जख्मे-आरज़ू की तरह
खिले हुए हैं मगर किसी जख्मे-आरज़ू की तरह
साथी समाँ सामाँ सब फीके हैं
बिन तेरे काँधे फुसलाये हुए हैं बहानों की तरह
कितना जी चुरायें यादों से
ये हमें देखतीं हैं मासूम सवालों की तरह
तलाशती हैं मेरी आँखें वही अपनापन
खो गया जो भीड़ के रेले में किसी साथी की तरह
दूर तो नहीं गये हो तुम भी
मगर खो गये हो ज़िन्दगी की दौड़ में बचपन की तरह
लगता तो नहीं था कि जी पायेंगे तेरे बिन
खिले हुए हैं मगर किसी जख्मे-आरज़ू की तरह