रिश्तों की अमीरी अक्सर
आड़े वक्त में अँजुरि से झर जाया करती है
न ज़ुदा करना ज़मीन से किसी को
वरना पनपते नहीं ,जड़ें भी मर जाया करती हैं
सलोनी सूरत भी जो गिर जाये नजरों से
तो दिल से उतर जाया करती है
लहज़ा बता देता है रिश्ते की गहराई
यूँ ही नहीं संवेदनाएँ मर जाया करती हैं
सबको तौल रहे हो एक ही तराजू पर
ये खुमारी भी वक्त के साथ उतर जाया करती है
ऐ मौत के मुसाफिर ,उल्टी गिनती है साँसों की
ज़िन्दगी पकड़ने की खातिर ही ,उम्र गुजर जाया करती है
कोई पहलू नहीं रहता अछूता कलम के हाथों से
अहसास की स्याही पन्नों पर बिखर जाया करती है
सूरज तो हरदम है सफर पर अपने
भर लो मुठ्ठी ,किरणें घर-घर जाया करती हैं