ज़िन्दगी कुछ यूँ भी गुजरी
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी
उसको चलना ही नहीं था साथ
बात कहने में इक उम्र लगी
चाहने भर से क्या होता
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी
ये जनम तो तन्हाई के नाम
समझने में बहुत देर लगी
हाथ में कुछ भी नहीं है
माथे पे शिकन ही शिकन लगी
गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी
सजा ही है ईनाम गर तो
दाँव पर उम्र सारी ही लगी
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी
उसको चलना ही नहीं था साथ
बात कहने में इक उम्र लगी
चाहने भर से क्या होता
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी
ये जनम तो तन्हाई के नाम
समझने में बहुत देर लगी
हाथ में कुछ भी नहीं है
माथे पे शिकन ही शिकन लगी
गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी
सजा ही है ईनाम गर तो
दाँव पर उम्र सारी ही लगी