कि बुत हो जाऊँ
तराशे गए हैं अक्स भी
मैं भी सो जाऊँ
सर्द आहों से पलट
जमाने की हवा हो जाऊँ
रूह को छू ले जो
रकीबों सी दुआ हो जाऊँ
कब बदलता है कोई
मैं ही काफिर हो जाऊँ
दर्द किसको नहीं होता
जुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...
कोई शुबहा कहीं नहीं है
रात हुई और तारे निकले
अरमाँ की गलियों में यूँ ही
हम अपना दिल हारे निकले
कोई मंजिल कहीं नहीं है
टूट के बिखरे सितारे निकले
बाँध सके जो हमको देखो
झूठे सारे सहारे निकले
अपनी चादर में फूलों के
काँटों से ही धारे निकले
डूबें कैसे बीच भँवर में
दूर बहुत ही किनारे निकले
उँगली पकड़ेंगे वो अपनी
ऐतबार के मारे निकले
पराई धड़कन , पराई साँसें
क्या-क्या पास हमारे निकले
इसे जरा ' प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है ' की तर्ज पर गुनगुनाएँ ...
उधड़े रिश्ते सिलने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
उलझ गए हैं मन के धागे
सुलझाने में , रेशमी गाँठें फिर खुलने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
बिखर गए जो अरमाँ अपने
उजड़ी बस्ती , वीराने को फिर बसने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
प्यार का पहला ख़त ये नहीं है
बिखरी उमंगें , फिर चुनने में दम बड़ा लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है
उधड़े रिश्ते सिलने में वक्त तो लगता है
बिखरे तिनके चुनने में वक्त तो लगता है