बुधवार, 7 अक्टूबर 2015

सफ़्हा-दर -सफ़्हा

ऐसे उठ आये तेरी गली से हम
जैसे धूल झाड़ के कोई उठ जाता है

यादों की गलियों में थे अँधेरे बहुत
वक़्त भी आँख मिलाते हुए शर्माता है

वक़्ते-रुख्सत न आये दोस्त भी
गिला दुनिया से भला क्या रह जाता है

लाये थे जो निशानियाँ वक़्ते-सफर की
रह-रह कर माज़ी उन्हें सुलगाता है 

अब मेरे हाथ लग गया अलादीन का चराग 
आतिशे-ग़म से भी अँधेरा छँट जाता है 

तय होता है लेखनी का सफ़र सफ़्हा-दर -सफ़्हा 
मील का हर पत्थर हमें समझाता है

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

देख के कितना है रन्ज रिश्ते में

तू न देख के कितना है रन्ज रिश्ते में अपने,
तू ये देख के क्या क्या है निभाया मैंने 
सारी दुनिया मिलती है किसे ,
टुकड़ों में मिली धूप को कैसे गले लगाया मैंने 

तू मुझसे जुदा ही नहीं है ,
कैसे समझाये कोई अपने ही जिगर को 
बोले जो कभी भी तुम सख़्त होकर ,
दरक गया कुछ तो कैसे सँभाला मैंने 

बेशक तू न देख पाये के ,
कितनी है रँगत तुझसे मेरी दुनिया में 
तू ये देखना के मुश्किल वक़्त ने हमें जोड़ा कितना 
तेरे चेहरे की इक-इक शिकन पर ,
सुख-चैन अपना सारा लुटाया मैंने 

रिश्तों की खूबसूरती एक-दूसरे को बर्दाश्त करने में है , निभाने में है 
तू ये देख के तकरार में भी है क्या-क्या तुझसे चाहा मैंने 
तू न देख के कितना है रन्ज रिश्ते में अपने,
तू ये देख के क्या क्या है निभाया 


शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

दिल तक उतरती हुई नमी

और हाँ नैनीताल जैसे ज़न्नत , और अब विदा लेने का वक्त आ चला है ....

कोई मेरे हाथों से जन्नत को लिये जाता है 
मेरे ख्वाबों के फलक को , लम्हों में पिये जाता है 

घबरा के मुँह फेर लेती है आशना अक्सर 
अब ये आलम है के दिल दीवाना किये जाता है  

अपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम 
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है 

खिड़की से घर में दाखिल होते अब्र के झुण्ड 
दिल तक उतरती हुई नमी से कोई ज़ुदा किये जाता है 

फिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा 
दिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है 

बरसों-बरस फुर्सत न मिली , छूटने लगा जो शहर 
ये कौन है जो फिजाँ का मोल किये जाता है 

रविवार, 19 जुलाई 2015

हम तेरे शहर से चले जायेंगे

इतने साल इस शहर में बिता कर अब जाने का वक्त हो चला है , सँगी-साथियों से बिछड़ने का वक़्त …

हम तेरे शहर से चले जायेंगे 
कितना भी पुकारोगे , नजर न आयेंगे 

अभी तो वक़्त है , मिल लो हमसे दो-चार बार और 
फिर ये चौबारे मेरे , मुँह चिढ़ायेंगे 

भूल जाना जो कभी , दिल दुखाया हो मैंने तेरा 
इतने अपने हो , गैर की तरह क्यों दिल दुखायेंगे 

धूप ही धूप रही , सफर में अपने बेशक 
छाया तेरी भी कभी , हम न भूल पायेंगे 

ये दुनिया आबाद रही हमेशा , दोस्ती के रँगों में 
महफिले-यारों की सँगत , कहो किधर से लायेंगे 

बुधवार, 17 जून 2015

तू जिसे ढूँढ रहा है

तू जिसे ढूँढ रहा है , वो तो इश्क है हक़ीकी 
दुनिया की महफ़िलों में , मिलता है वो रिवाजी 

ज़माने की आँधियों में , रहना है तुझे साबुत 
मिले न भले कुछ भी , हर हाल में हो राजी 

ज़िन्दगी का है ये मेला , चाहे तो चल अकेला 
चाहे तो सजदा कर ले , चाहे तो रख नाराज़ी 

मिलती नहीं है दुनिया तो , लगती है भले सोना 
मिल जाये तो माटी है , प्राणों की लगे बाज़ी 

चल-चल के जो तू हारे , चारों तरफ निहारे 
रूहों का शहर है ये , रिश्तों की है मोहताजी 

माने तो दुनिया सहरा , माने तो दुनिया महफ़िल 
फ़ानी है सारी दुनिया , कोरी है ये लफ़्फ़ाज़ी 

सच्चा ही तू रह खुद से , इतना भी तो है काफ़ी 
आयेगा सब ही आगे , छोड़ेगा कहाँ माज़ी 

बुलबुलों सा फ़ना होता , ज़द्दो-जहद की खातिर 
सागर से कब मिलेगा , नजरों में रख अजीजी 


मंगलवार, 2 जून 2015

हाल अपना क्यूँ सुनाएँ

लम्हों ने कीं ख़ताएँ 
सदियों ने पाईं सजाएँ 

सहर सी खिलीं फिज़ाएँ 
मरघट सी सूनीं खिज़ाएँ 

लफ़्ज़ों में क्या बताएँ 
हाल अपना क्यूँ सुनाएँ 

फूलों को जो दिखाएँ 
काँटों पे चल बताएँ 

ज़िन्दगी की हैं अदाएँ 
सहरां में फूल खिलाएँ 

बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ 
चिन्गारी किस को दिखाएँ 

मंगलवार, 12 मई 2015

बगावत भी नहीं

उठते हैं दुआओं में जब हाथ मेरे 
लब हिलते ही नहीं 

टूटा है भरोसा मेरा 
अल्फ़ाज़ निकलते ही नहीं 

पड़ गये छाले हैं 
चला जाता ही नहीं 

है कैसा सफर ये 
सूलियाँ दिखती ही नहीं 

और जाऊँ भी किधर 
रूह का शहर मिलता ही नहीं 

नहीं बनना है तमाशा मुझको 
साबुत हूँ , आँख में पानी भी नहीं 

एक धीमा सा जहर उतरा है 
मेरी रगों में , बगावत भी नहीं 

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

दौड़े बहुत हो

आँतक-वाद की रोकथाम कैसे हो .....

बदले के बदले चलते रहेंगे 
खुदा बन के खुद को छलते रहेंगे 

थोक में बिछी लाशें , क्या सुख है पाया 
जो भी गया है ,लौट के न आया 
जख्मीं हैं सीने तो , मरहम लगाओ 
गूँजती सदाओं को , न तुम भुलाओ 
कब तक यूँ ख़्वाबों को मसलते रहेंगे 

कराहता है कोई , नजर न चुराओ 
सीने में उसको , न यूँ तुम दबाओ 
बहुत दिन हुए हैं , तुम्हें मुस्कराये 
दौड़े बहुत हो , नहीं पता पाये 
सहरा में कब तक भटकते रहेंगे 

बदले के बदले चलते रहेंगे 
खुदा बन के खुद को छलते रहेंगे 




रविवार, 29 मार्च 2015

हम सब हैं किताब

हम सब हैं किताब , पढ़ने वाला न मिला 
या खुदा ऐसा भी कोई ,चाहने वाला न मिला 

हाथ में हाथ लिये चलते रहे हम यूँ ही 
दूर तक कोई भी साथ निभाने वाला न मिला 

चलती रहती है सारी दुनिया यूँ तो दिल से 
फिर भी कोई पलकों पे बिठाने वाला न मिला 

गुनगुनाने के लिये चाहिये कोई तो फिजाँ 
वफ़ा के गीत कोई भी सुनाने वाला न मिला 

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह 
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला 

मंगलवार, 17 मार्च 2015

होली में मन रँग बैठी है

व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई  ....

आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है 
एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है 

सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है 
दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है 

हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे 
बच्चे-बड़े हँसें किलकारी भर-भर,उम्र तो अल्हड़ बन बैठी है 

ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न 
आँगन-आँगन रँग बरसे , उत्सव से भी ठन बैठी है 

भाँग-धतूरा नशा नहीं है , गले मिले बिन मजा नहीं है 
सिर चढ़ कर बोले ये जादू , होली-होली मगन बैठी है 

मीठी-मीठी तकरारों में , लाग-लपेट की मनुहारों में 
मौज-मस्ती की आड़ में देखो , रिश्तों की गरिमा बैठी है 



सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

धूप हम भुला न सके

ये जो हाले-दिल तुम्हें हम सुना न सके
फासले दिलों के भी हैं ,जो मिटा न सके

तुम्हारे तरकश में तीर शब्दों के हैं
ज़ख्मी-जिगर निशाँ ,आज तक भुला न सके

उम्र भर पूछते रहे ज़िन्दगी का पता ही
फूल तेरी चाहत के ,अरमान खिला न सके   

धूप ही धूप उतर आई है शब्दों में 
छाया कितनी भी रही , धूप हम भुला न सके 

उँडेल कर रख दिया है सीना हमने 
जो तुम पढ़ न सके , हम पढ़ा न सके 

इक अदद दोस्त की तमन्ना ने हमें मारा है 
वरना ज़िन्दा थे हम भी ,क्यों गुनगुना न सके 

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

ये सानिहा सा

वो आया तो ऐसे आया ,
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया 
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया 

हमने देखे हैं गुलाब महकते हुए भी ,
काँटों पे चल के , ये हमने क्या पाया 
सजी हुई थी चाँद तारों की महफ़िल ,
फिर ये सानिहा सा क्यूँकर आया 

दाँव पर दिल ही लगा ,हर बार ,
किसके पास कभी कोई ,सिर के बल आया 
ज़िन्दगी धूप ही रही है , हमेशा 
छाया की फितरत को कब टिकते पाया 


रविवार, 1 फ़रवरी 2015

ज़िन्दगी का निशाँ

ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो  
के तन्हा सफ़र कटता नहीं   

 

दम घुटता है के
साहिल का पता मिलता नहीं   

जगमगाते हुए इश्क के मन्जर  

रूह को ऐसा भी घर मिलता नहीं 
 
  
तुम जो आओ तो गुजर हो जाए  

मेरे घर में मेरा पता मिलता नहीं 
 
  
लू है या सर्द तन्हाई है 

एक पत्ता भी कहीं हिलता नहीं  


ऐ मुहब्बत मेरे साथ चलो  

बुझे दिल में चराग जलता नहीं  
 

तुम्हीं तो छोड़ गई हो यहाँ मुझको  

ज़िन्दगी का निशाँ मिलता नहीं 

बुधवार, 21 जनवरी 2015

शहर-दर-शहर गुजरे

न बुलाओ हमें उस शहर में किताबों की तरह 
बयाँ हो जायेंगे हम जनाज़ों की तरह 

मुमकिन है खुशबुएँ जी उट्ठें 
किताबों में मिले सूखे गुलाबों की तरह 

जाने किस-किस के गले लग आयें 
हाथ से छूट गये ख़्वाबों की तरह 

यादों के गलियारे कहाँ जीने देते 
चुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह 

डूब जायेंगे हम आँसुओं में देखो 
न उधेड़ो हमें परतों में प्याजों की तरह 

चलना पड़ता है सहर होने तलक 
दिले-नादाँ शतरंज के प्यादों की तरह 

मुट्ठी में पकड़ सका है भला कौन 
शहर-दर-शहर गुजरे मलालों की तरह 



सोमवार, 12 जनवरी 2015

सदियों को दो आराम


जाओगे कहाँ कोई सत्कर्म करने तुम 
चेहरे पे खिला दो किसी के तुम कोई मुस्कान 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

घर में हों गर माँ-बाप दादा-दादी से बुजुर्ग 
तन-मन से करो सेवा ,अपना जनम सफल 
खिल जायेगा उनकी दुआओं का चमन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

बन कर के किसी पेड़ से , तुम सह लो सारी घाम 
पथिकों को दो छाया , सदियों को दो आराम 
हर ठूँठ पर फूल उगाने का हो जतन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

अपने लिये तो जीता है , हर कोई देख लो 
रुकता है भला कोई काम ,क्या किसी के बिन 
जीवन को भी उपयोगी बनाने की हो लगन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन

अन्दर है तेरे भी कोई नन्हा सा बच्चा देख 
खिलखिलाना चाहता है खुल के ,जो तू देख 
सहज सरल रह कर , कुछ भी नहीं कठिन 
लो हो गया भजन , लो हो गया भजन