आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर
रग-रग में धूप समाई न
हम वादा कर के भूल गए
खुद से भी हुई समाई न
क्यूँ जाते हैं उन गलियों में
पीछे छूटीं , हुईं पराई न
ठहरा है सूरज सर पर ही
चन्दा की बारी आई न
सरकी न धूप , रुका मन्जर
आशा से हुई सगाई न
न कोई नींद , न कोई छलाँग
पुल सी कोई भरपाई न
दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न