कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक
चप्पे चप्पे पे राज़ किसका है
अपनी धड़कन भी कहाँ अपनी है
अपनी चाबी तो खुद हमने
अपनी दुनिया के हाथों में थमाई है
कब ज़माने के हिलाये से हिले हम
दिल के साज़ पे सुर-ताल
अपनी दुनिया की ही तो कारस्तानी है
ज़माने से ज़ुदा जो आबाद हुई
उसके सिवा अब चलने को
दुनिया की कोई राह कहाँ अपनी है
क्या बताएँ , हम हैं उसी दुनिया के मालिक
चन्द लम्हों को छोड़ हमको
नाज़ जिसका है |
कहने को हम हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक