बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं


गुलाबी गुलाबी रँग अरमानों के
गुलाबी गुलाबी ख्वाब इन्सानों के

.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं
गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है
उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता
चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता

२. बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता