वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का
कौन जाने बुझ-बुझ के जले , जिया बेकरार किसी का
हाले-दिल किस को सुनाएँ
क्यूँ दिल है सोगवार किसी का
रँग चाहत के भर तो लेते हम भी
हासिल न हुआ इकरार किसी का
हाथ लगते ही बहार आ जाती
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का
नरगिसी बातों में फिसल तो जाते हैं
चमन में क्या है ऐतबार किसी का
वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का
कौन जाने बुझ-बुझ के जला है जिया बेकरार किसी का