सोमवार, 15 मार्च 2010

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले

एक ही तर्ज़ पर दो गीत
1.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
अरमाँ मचल कर पहलू में हिले

बदला है मौसम , दिल भी है सहमा
ले चल किसी अमराई तले

पत्ता न हिलता , गुम है हवा भी
तपती जमीं पर भी पुरवाई चले

झपकता है आँखें , कुम्हलाया शज़र भी
यादों के जब जब लग आता गले
2.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

धड़कन वही , हर गीत में वही
जमीं भी वही, आसमाँ भी वही
लडखडाये जो हम अजनबी से मिले

शिकवे नहीं और गिले भी नहीं
अपनी वफ़ा के सिले भी नहीं
पहचाने नहीं जाते ऐसी बेरुखी से मिले

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे