सोमवार, 27 अप्रैल 2009

तेरी हर बात

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
कैसे पायेगी सिला
उथली है , उड़ी होती है
ठगे से देखते हैं , पलकें झुकती भी नहीं

कैसे करते हम गिला
वफाओं का बाग़ मिलता नहीं

रूठा रूठा सा चमन
खुशबू का ख्वाब खिलता नहीं

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
देखें किस ओर ले जाती है ये

तेरे झूठे बहानों में
मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है
तेरी हर बात....


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आवाज में

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

मेरे माही ते चानणे दा रँग इक

ये गीत कुछ इस इरादे से लिखा कि पंजाबी का गाना बन सके ....

डीवा बाल के चुबारे उत्ते रक्खाँ
जिया बाल के हनेरे उत्ते रक्खां
मेरे माही ते चानणे दा रंग इक
कदे नच्चाँ ते कदे मैं टप्पाँ


1.ओ चढ़दा ऐ पूरब पासेओं
दिल दी पतली गली दे रा तों
चुम लैन्दा ऐ बदली सारी
मेरे अरमाँ दी बाँ फड़ फड़ के


२.राताँ कट्टा मैं नाले उडीकाँ
पन्गे लवाँ मैं नाल हवावाँ
आसाँ दियाँ पीन्गा पावाँ
माही आवे ते नाल झुलावे


३.शर्म हया दियाँ सारियाँ गल्लाँ
कह छड़दियाँ ने मेरियाँ अक्खाँ
केडे पासे मैं जाके लुक्कां
चारों पासे ने चानणे उसदे



इसका हिंदी अनुवाद है


दिया जला के चौबारे के ऊपर रखूँ

जिया जला के अँधेरे के ऊपर रखूँ
मेरे सनम और उजाले का रंग है एक
कभी नाचूँ और कभी मैं कूदूँ


१. वो चढ़ता है पूरब की ओर से
दिल की पतली गली की राह से
चूम लेता है बदली सारी

मेरे अरमानों की बाँह पकड़ पकड़ के

२.रातें काटूं मैं साथ इंतज़ार के
पन्गे लूँ मैं साथ हवाओं के
आशाओं के झूले डालूँ
सनम आये और साथ झुलाए


३.शर्म हया की सारी बातें
कह देतीं हैं मेरी आँखें
किस तरफ मैं जाकर छुपूँ
चारों ओर हैं उसके उजाले

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

सूरज को अभी देर है

हवा का इक झोँका था , मैनें द्वार तक सजा लिया
सूरज को अभी देर है , तेरे घर तक आने में
इक सपना दिखाने को आँख लगी हो जैसे

ठगे से देखते हैं गुलशन की नाउम्मीदी को
तूने अपनी ही कोई बात कही हो जैसे

रूठा है मेरा अपना ही , मुझसे मेरा सँसार कहीं
तेरी हर पीड़ पराई हो जैसे

झुक जाता है अम्बर भी तो , धरती का तकना बेकार नहीं
छूटे लम्हें पकड़ने को साँस रुकी हो जैसे
सूरज को अभी देर है , तेरे घर तक आने में

मेरी ही आवाज में
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गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

मौसम का तकाजा करना

दो चार गलियाँ घूम लो
फ़िर करके ,
मौसम का तकाजा करना

क्यूँ जुदा थीं अपनी राहें
ये बात ज्यादा करना

वक्त कब रुकता कहीं
गम ज्यादा करना

सीने में दरक गया है कुछ
तुम अन्दाजा करना

ख़ुद से ही बातें करते हैं
मौसम का तकाजा करना

पलकों पे बिठाना तो आता है हमें
तुम नूर की दुनिया से इशारा करना

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

पकड़ा है कस के कल को

आसमान उसका छूटा हुआ है
दिल जिसका टूटा हुआ है

कहर बन कर बरपी है बिजली
अरमानों के दिये बुझ गये हैं

वो उड़ने चला था आसमां में
पँख उसके जख्मी पड़े हैं

ये हवाएँ जो दिखती हैं चुप सी
उसके सीने को नश्तर लगे हैं

उसने पकड़ा है कस के कल को
आज उसके हाथों से छूटा हुआ है

आसमां तो है बाहें फैलाये
परिन्दा अपनी उड़ानों से रूठा हुआ है