ये जो हाले-दिल तुम्हें हम सुना न सके
फासले दिलों के भी हैं ,जो मिटा न सके
तुम्हारे तरकश में तीर शब्दों के हैं
ज़ख्मी-जिगर निशाँ ,आज तक भुला न सके
उम्र भर पूछते रहे ज़िन्दगी का पता ही
फूल तेरी चाहत के ,अरमान खिला न सके
धूप ही धूप उतर आई है शब्दों में
छाया कितनी भी रही , धूप हम भुला न सके
उँडेल कर रख दिया है सीना हमने
जो तुम पढ़ न सके , हम पढ़ा न सके
इक अदद दोस्त की तमन्ना ने हमें मारा है
वरना ज़िन्दा थे हम भी ,क्यों गुनगुना न सके
फासले दिलों के भी हैं ,जो मिटा न सके
तुम्हारे तरकश में तीर शब्दों के हैं
ज़ख्मी-जिगर निशाँ ,आज तक भुला न सके
उम्र भर पूछते रहे ज़िन्दगी का पता ही
फूल तेरी चाहत के ,अरमान खिला न सके
धूप ही धूप उतर आई है शब्दों में
छाया कितनी भी रही , धूप हम भुला न सके
उँडेल कर रख दिया है सीना हमने
जो तुम पढ़ न सके , हम पढ़ा न सके
इक अदद दोस्त की तमन्ना ने हमें मारा है
वरना ज़िन्दा थे हम भी ,क्यों गुनगुना न सके