टूटे हुए दिल से भला क्या पाओगे
खिजाँ का मौसम किस तरह निभाओगे
इक कदम भी भारी है बहुत
जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे
रुका है वक्त क्या किसी के लिए
सैलाब मगर ठहरा हुआ ही पाओगे
ठण्डी साँसें हैं पुरवाई नहीं
सहराँ की हवाओं में झुलस जाओगे
जीती-जागती बस्ती में मुर्दा है कोई
मरघट में हलचल का पता पाओगे
हमने चरागे-दिल से कहा
सहर तलक जलने की सजा पाओगे
परछाइयों से डरते हो
शबे-गम किस तरह निभाओगे
कतरा-कतरा ग़मों को पीना है
हलक से ज़िन्दगी कैसे उतार पाओगे
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
23 घंटे पहले