बुधवार, 24 दिसंबर 2014

तुम्हारी आँखों में

तुम्हारी आँखों में हौसला चमकता बहुत है 
तुम्हारे आस-पास समाँ महकता बहुत है 

तुम्हें छू कर जो आतीं हैं हवाएँ 
इनकी नमी से अपनापन टपकता बहुत है 

तुम्हारे आ जाने से आ जाती है रौनक 
यादों की क्यारी में तुम्हारा चेहरा दमकता बहुत है 

तुम्हारी पलकों पर रक्खे हैं जो ख़्वाब 
कोई इनमें ही आ-आ के बहकता बहुत है 

तुम्हें देखूँ ठिठक जातीं हैं निगाहें 
ये मन किसी बच्चे सा चहकता बहुत है 

शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

दो कदम चल के

मुझको इस दुनिया ने दिया भी तो क्या 
मेरी निष्ठा पर है सवाल लगा , कद्र-दाँ न मिला 
सारा गगन है झुका , ज़मीं है नहीं क़दमों तले 

सो गये नज़ारे भी , ख़्वाबों के सितारे भी 
दो कदम चल के , मेरे अरमान सारे भी
ये मोहताजी है क्यूँकर , भीड़ में तन्हा है जहान सारा ही 

इम्तिहान की घड़ियाँ , वक़्त से हारे भी 
हम तो हैं बेशक , सब्र के मारे भी 
किसे मिली है मन्जिल , दौड़ता रहता है जहान सारा ही 

रविवार, 30 नवंबर 2014

ऐसे हमको दो पर मौला

सपने ओढूँ ,सपने बिछाऊँ
मगर हकीकत से जी न चुराऊँ
कुछ ऐसी करनी कर मौला 
मेरी ज़िन्दगी में भी ,कोई रँग तो भर मौला 

कितना खोया , कितना पाया 
लाख सँभाला ,कहाँ टिक पाया 
चला-चली का मेला है बेशक 
मेरे हिस्से में भी , कोई रहमत तो कर मौला 

किसी ने दस्तर-खान बिछाया 
किसी ने पँखों को सहलाया 
लाख ज़ुदा हों अपनी राहें 
कोई फ़लक तो हमको मिला दे 
ऐसे हमको दो पर मौला 

शनिवार, 15 नवंबर 2014

वक़्त की नफ़ासत

है अदब भी फासले का दूसरा नाम 
होती है यूँ भी इबादत कभी-कभी 

जंजीरों की तरह रोक लेतीं हैं जो 
दीवारें भी बोलतीं हैं राहों की इबारत कभी-कभी 

चुप हो के भले बैठे दिखते हैं जो 
करते हैं वो भी बगावत कभी-कभी 

है आसाँ नहीं हवाओं का रुख मोड़ना 
करता है ज़मीर ही खिलाफत कभी-कभी 

लिखता है भला कौन ज़ुदाई के नगमे
चुभती है ये भी हरारत कभी-कभी 

चलता रहता है आदमी बिना सोचे-समझे 
अटका तो समझ आती है वक़्त की नफ़ासत कभी-कभी 

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा

A few lines for my loving daughter ...

अपने क़दमों से तूने नापी दुनिया
दिल बड़ा मुझे करना पड़ा
तेरी उड़ानों में है आगे बढ़ने का मज़ा 
दिल कड़ा मुझे करना पड़ा
सूरज वही , चन्दा भी वही ,
तुझसे जुदा ,घूँट ये भी मुझे भरना पड़ा
सुनूंगी ,महसूस भी करुँगी तुझे
झप्पी जादू की से महरूम मुझे होना पड़ा
शाम होते ही आते लौट परिन्दे घर
नीड़ यादों से रौशन मुझे करना पड़ा
तेरी आहट से सज जाता था इन्तिज़ार भी
जागती आँखों में ख़्वाब मुझे बुनना पड़ा
यकीं तुझ पर भी है,तेरे सितारों पर भी
वक़्त की इस करवट से भी रूबरू मुझे होना पड़ा
दूर महकेगी तू किसी शाख पर
दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा

शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

व्रत है या ये कोई पर्व है

आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया 
रात के अन्तिम पहर में जग कर 
बैठ सुहागन सर्घी करती
अन्न दही फल मेवा मिष्ठान और नारियल 
शगुनों भरी है थाली 
करवा-चौथ का व्रत है साजन
अपने प्रिय की है वो प्रेयसि 
नस-नस में रँग भरती 
  
निर्जल व्रत है , सोलह श्रृंगार कर 
सज-धज कर और थाली सजा कर 
सारी सुहागनें बैठ कथा हैं सुनतीं 
चाँद की पूजा करने के बाद ही 
मुँह में ग्रास वो रखतीं 
आशीर्वाद बड़ों से लेकर ,
सीने में खुशियाँ भरतीं 

व्रत है या ये कोई पर्व है 
रंगों भरा है मेला 
मन ही मन फिर कह उठतीं हैं 
जन्मों का है साथ सजनवा 
चलो पकड़ कर हाथ सजनवा 
अपने पिया की हैं वो सुहागन 
चाँद भी हामी भरता 
आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया 
आज का सारा उद्यम पिय के नाम वो करतीं 

बुधवार, 17 सितंबर 2014

गैर की तरह

उन्हें ये है ऐतराज़ के हम खुश रहते क्यूँ हैं 
घड़ी-घड़ी रह-रह के यूँ मुस्कराते क्यूँ हैं 

बड़ी मुश्किल से आये हैं इस मुकाम पर 
फिर पुरानी राह हमें वो दिखलाते क्यूँ हैं 

अपने सीने में भी धड़कता है दिल 
हो जा ज़िन्दगी से महरूम बतलाते क्यूँ हैं 

हमें मालूम है दुनिया का चलन 
गैर की तरह वो भी सितम ढाते क्यूँ हैं 

उन्हें मालूम नहीं ,वही मुस्कराते हैं सीने में 
मेरे चेहरे का रँग वही उड़ाते क्यूँ हैं 

सोमवार, 18 अगस्त 2014

ये चाहतों का सफर

ज़िन्दगी एक तन्हा सफ़र है गोया 
हर कदम राह में यार की उठता हो गोया 

उसके आने से महकता है समाँ 
उसकी मेहरबानी भी सँग-सँग हो गोया

करवटें बदलती रहती हूँ मैं 
नीँद उसको भी तो आ गई हो गोया

वक्त के बेरहम हाथों ने बख़्शा किसे 
हर सीने में नमी ही तैरती हो गोया

ये चाहतों का सफर ले आया है 
इक जँग खुद से भी छिड़ी हो गोया

वो मेरा दोस्त है तो दुश्मनी क्यूँ-कर 
दिए के साथ-साथ कोई हवा हो गोया

शुक्रवार, 27 जून 2014

मेरे लई ते राताँ ने सारियाँ

वे चन्ना , किस कम्म दिआं ऐ महल ते माड़ियाँ 
तेरे बाज्यों सब ने विसारिआं 
केहड़े पासेओं दिन ऐ चढ़दा 
मेरे लई ते राताँ ने सारियाँ 

सुंजियाँ मेरियाँ दिल दियाँ राहाँ 
देके विखाली लुक्क गया कोई 
टक्करां मारन अक्खाँ मेरियाँ 

रोंदी होई हस्स पैन्नी हाँ 
किस थां जावाँ रूह पुच्छदी ऐ 
पिंजर मेरा डोराँ तेरियाँ 

गम साथी ने घर मेरा तक्कया 
फुल्ल बहुतेरे खुशबू नदारद 
दुनियावी गल्लाँ मुक्क गइयाँ सारियाँ

वे चन्ना , किस कम्म दिआं ऐ महल ते माड़ियाँ 
तेरे बाज्यों सब ने विसारिआं 
केड़े पासेओं दिन ऐ चढ़दा 
मेरे लई ते राताँ ने सारियाँ 

मंगलवार, 6 मई 2014

पढ़े , तेरे खत फिर से

बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से 
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से 

वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास 
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से 

छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी 
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से 

रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम 
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से 

कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या 
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से 

दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें 
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से 

गुरुवार, 1 मई 2014

तो अपना क्या होगा

हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते 
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा 

ख़्वाब तो आसमाँ में उड़ाते हैं 
तुम जो ज़मीं पर ही उतारोगे तो अपना क्या होगा 

इरादों में हौसलों की चमक होती है 
तुम जो हकीकत को नकारोगे तो अपना क्या होगा 

बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने 
दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा 

हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते 
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा 


शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

बुत किसे होना पड़ा

काँटों पे सोना पड़ा 
फूलों को रोना पड़ा 

दिल की लगी देखो 
नींदों को खोना पड़ा 

सफर लम्हों का है 
सदियों को ढोना पड़ा 

दीदारे-खुदा के लिये 
हस्ती को खोना पड़ा 

जन्मों का मैला मन 
असुँअन से धोना पड़ा 

गँगा की पावन लहर 
आस का दोना पड़ा 

किसकी हथेली पे जाँ 
बुत किसे होना पड़ा 


सोमवार, 31 मार्च 2014

जी भर कर तुम जल कर देखो

एक आस का दिया जला कर , कितने फूल खिलाये हमने 
मैं ही नहीं हूँ कायल इसकी , दुनिया भर से जा कर पूछो 

दीवाली सी जगमग होती , तम से भरी रात भी देखो 
बाती सँग तेल भी सार्थक होता , जी भर कर तुम जल कर देखो 

और चमन में क्या करना है , सूरज की अपनी महिमा है 
रँग जाते हैं उस रँग में , जिसके सँग तुम चल कर देखो 

सदियों से होता आया है , अक्सर दुख का खेल यहाँ 
अन्तर्मन में न उतरे जो , ऐसा सौदा ले कर देखो 

खुशबू भला कहाँ छुपती है , आँखें कर देती हैं चुगली 
इन्द्रधनुष सा खिल उठता है , फलक की सीढ़ी चढ़ कर देखो 

शनिवार, 22 मार्च 2014

सब्र का प्याला

 दर्द के घूँट और सब्र का प्याला 
साकी ने मेरा इम्तिहान ले डाला 

अपने हाथों से जो देता है रहमत 
उन्हीं हाथों से कहर दे डाला 

यकीन अब भी है , तेरे इम्तिहाँ ने 
इक नया मुकाम दे डाला 

दूर से माप रहा तू हौसला मेरा 
लो, मैंने भी तुझे पढ़ डाला 

इम्तिहाँ हैं तालीम का हिस्सा 
वक्त ने फैसला सुना डाला 

कभी तेरी ये सदा , कभी तेरी ये दवा 
पीना हमको है , शिकन न डाला 

साथी भी है , समाँ भी , सामाँ भी 
रूठी किस्मत की नजर कर डाला 

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

बर्फ है के चाँदनी है

वेलेन्टाइन डे की रात , प्रकृति ने बर्फ़बारी से नहला दिया सरोवर नगरी को , कुछ इस तरह .. 

बहुत इन्तज़ार करवाती हो तुम
कितनी ही बार खिड़की से झाँक कर देखा
और जब आती हो तो दबे पाँव ,
आहट भी नहीं करतीं
सब तरफ बिछ जाती हो 
बिल्कुल ज़िन्दगी की ही तरह
अब तुम्हारी चमक से
सारी दुनिया बदली हुई सी लगती है
ये मौसम की मेहरबानी है
सारा शहर पेड़-पौधे तेरे रँग में रँगे हुए से लगते हैं
बर्फ है के चाँदनी है ....सारी कायनात नहाई हुई सी लगती है
भीगी-भीगी मेरे मन की हालत की ही तरह

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

18 jan.14,नैनीताल में स्नोफाल की अनुपम छटा

 ये कौन सी चाँदनी है लहराई हुई 
बिखर गई है सफेदी चारों तरफ बल खाई हुई 

ये मेरे शहर के घरों की छतों ने ओढ़ ली चादर 
जैसे के हो कोई नवेली शरमाई हुई 

मौसम का तकाज़ा है के बैठें घर में 
मन के पँछी को तो उड़ानें हैं भाई हुई 

कैद कर लेंगे इन नज़ारों को सीने में 
फिर अगले बरस आएगी ये रूत इतराई हुई 

आवाज नहीं करती है कुदरत 
चुपचाप है ये मेहर कहाँ से आई हुई 

हम टँगे हैं अपनी खिड़की पर 
देख रहे हैं परत-दर-परत चाँदनी तहाई हुई 


मौसम का पारा तो गिर गया है बहुत 
मगर आँखों की बहुत सिकाई हुई 

लोग गिरते-पड़ते ,उछालते बर्फ के गोले 
इस बहाने भी कोई मस्ती है हाथ आई हुई 

बर्फ के फूल खिले हैं हर चेहरे पर 
ये धूप है हर आँगन में समाई हुई   

रविवार, 5 जनवरी 2014

मन मैला तो कौन खुदा

मन मैला तो कौन खुदा 
रहता है तू ,खुद से भी ज़ुदा 

आना है मेरे पास तो , किसी रूह की तरह आ 
इस तन को चोगे की तरह , किसी खूँटी पर टाँग के आ 

मन मैला तो कौन खुदा 
रहता है तू ,खुद से भी ज़ुदा

प्यास जन्मों से लगी है ,बुझेगी ये भरम है तुझको 
अपने ही सामने तू , किसी गैर की तरह आ 

मन मैला तो कौन खुदा 
रहता है तू ,खुद से भी ज़ुदा

दिल लताड़ने के लिये नहीं होते ,किसी खुशबू सा 
चमन में ठण्डी हवा के झोंके की तरह आ 

मन मैला तो कौन खुदा 
रहता है तू ,खुद से भी ज़ुदा