मुझे मूक राहों के बदले में, वो मुकाम दे जो बदल सकूँ
यूँ तो चाहतों का सफर भी है और राहतों का असर भी है
कोई तो हो ऐसी डगर जो ,मैं वक्त बन पकड़ सकूँ
मेरी जुस्तजू का गुजर भी है और आशना का बसर भी है
मुट्ठी में कोई बयार दे ,जो ख्याल बुन जकड़ सकूँ
यूँ तो सीढियों का चलन भी है और पीढ़ियों का गगन भी है
सहराँ में कोई खुमार दे ,कि मैं फूल बन अकड़ सकूँ
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