बुधवार, 30 जनवरी 2013

सामाँ होता तो

सपना होता तो उड़ान भी होती 
रेला होता तो लगाम भी होती 

इक चुप सी लगी है जाने 
बात होती तो जुबान भी होती 

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये 
ठहरे होते तो थकान भी होती 

क्यूँ आहों को सजाये बैठे हैं 
सामाँ होता तो दुकान भी होती 

बस्ती से ज़ुदा वीरान है मस्ज़िद 
मुल्ला होता तो अज़ान भी होती 

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

रातों की दिया-बाती

जलता हुआ सहरा है , चेहरे पे उदासी है 
आँखों में बदहवासी , जलने की बू आती है 

घड़ी दो घड़ी को , गुलशन का करार देखो 
खिजाँ की कोई रुत भी , पसरी है कि  खाती है 

साबुत न बचा न कोई , चक्की के दो पाटों में 
घर से निकले तो ये दुनिया है , अपना समझे तो ये थाती है 

दिल लगी की बहुत बातें , कह दें तो रुसवाई है 
न बोलें तो बोझ दिल पे , धड़कन की ये पाती है 

ढलता हुआ सूरज है , आँखों में बसी किरणे 
छीने न कोई हमसे , रातों की दिया-बाती हैं 

रविवार, 13 जनवरी 2013

हादसे ही ले आये हैं

हादसों की न पूछो 
बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो 

वक़्त हुआ है 
किस पे मेहरबाँ पूछो 

टूट गया दिल 
ढह गया मकाँ पूछो 

महकते थे गुल 
बचे हैं क्या निशाँ पूछो 

हादसे ही ले आये हैं 
इस मुकाँ पूछो 

मिट-मिट के हुआ है 
गम जवाँ पूछो 

जज़्बात हैं स्याही के सिवा 
लेखनी की जुबाँ पूछो 

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

नया साल आया तो खड़ा है

नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है  

गुजरे साल में ज़ख़्मी हुए हम 
जार जार रोई मानवता 
काँधे पे अपने , लिए ज़मीर की , लाश खड़ा है 

सूख गये विष्वास के मानी 
मर गया आँख में शर्म का  पानी 
अस्मिता बचाओ , घर में लुटेरा आन खड़ा है 

जननी , भगिनी , भामिनी 
नारी के सम्मान की भाषा 
हाथ में लिए मशाल ' दामिनी ' , हर रिश्ते का पहरेदार खड़ा है 

हर आँख नम है 
हर सीने में कितना गम है 
कैसे करें सत्कार तुम्हारा , गुजरा साल सीने में अड़ा है 


नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है