हादसों की न पूछो
बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो
वक़्त हुआ है
किस पे मेहरबाँ पूछो
टूट गया दिल
ढह गया मकाँ पूछो
महकते थे गुल
बचे हैं क्या निशाँ पूछो
हादसे ही ले आये हैं
इस मुकाँ पूछो
मिट-मिट के हुआ है
गम जवाँ पूछो
जज़्बात हैं स्याही के सिवा
लेखनी की जुबाँ पूछो
बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो
वक़्त हुआ है
किस पे मेहरबाँ पूछो
टूट गया दिल
ढह गया मकाँ पूछो
महकते थे गुल
बचे हैं क्या निशाँ पूछो
हादसे ही ले आये हैं
इस मुकाँ पूछो
मिट-मिट के हुआ है
गम जवाँ पूछो
जज़्बात हैं स्याही के सिवा
लेखनी की जुबाँ पूछो
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सही .सार्थक अभिव्यक्ति ”ऐसी पढ़ी लिखी से तो लड़कियां अनपढ़ ही अच्छी .”
जवाब देंहटाएं@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंवाह!!!बेहतरीन भाव संयोजन शारदा जी बहुत खूब....
जवाब देंहटाएं...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत अभिव्यक्ति..शारदा जी
जवाब देंहटाएंमुस्कुराहट पर ...ऐसी खुशी नहीं चाहता
टूट गया दिल
जवाब देंहटाएंढह गया मकाँ पूछो ...
हालात को कहने का आपका अपना अंदाज बेहद लाजवाब है ...
बहुत खूब ...
हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ...
हटाएंआपकी टिप्णियों से निसंदेह हौसला बढ़ता है ..
जवाब देंहटाएंजज़्बात हैं स्याही के सिवा
जवाब देंहटाएंलेखनी की जुबाँ पूछो
बहुत खूब ,,,
सटीक लेखन ,,,,
सादर .
हादसों की न पूछो
जवाब देंहटाएंबचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो ..
वाकई ..बहुत सुंदर रचना !
sunder rachana , achchi abhivyakti.
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