जलता हुआ सहरा है , चेहरे पे उदासी है
आँखों में बदहवासी , जलने की बू आती है
घड़ी दो घड़ी को , गुलशन का करार देखो
खिजाँ की कोई रुत भी , पसरी है कि खाती है
साबुत न बचा न कोई , चक्की के दो पाटों में
घर से निकले तो ये दुनिया है , अपना समझे तो ये थाती है
दिल लगी की बहुत बातें , कह दें तो रुसवाई है
न बोलें तो बोझ दिल पे , धड़कन की ये पाती है
ढलता हुआ सूरज है , आँखों में बसी किरणे
छीने न कोई हमसे , रातों की दिया-बाती हैं
आँखों में बदहवासी , जलने की बू आती है
घड़ी दो घड़ी को , गुलशन का करार देखो
खिजाँ की कोई रुत भी , पसरी है कि खाती है
साबुत न बचा न कोई , चक्की के दो पाटों में
घर से निकले तो ये दुनिया है , अपना समझे तो ये थाती है
दिल लगी की बहुत बातें , कह दें तो रुसवाई है
न बोलें तो बोझ दिल पे , धड़कन की ये पाती है
ढलता हुआ सूरज है , आँखों में बसी किरणे
छीने न कोई हमसे , रातों की दिया-बाती हैं
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
प्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।
सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
जवाब देंहटाएंआप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
आपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएं६४ वें गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
'साबुत न बचा कोई चक्की के दो पाटों में ...''....
जवाब देंहटाएंवाह!क्या कहने!यह शेर खास लगा .
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंढलता हुआ सूरज है, आँखों में बसी किरणे
जवाब देंहटाएंछीने न कोई हमसे, रातों की दिया-बाती----
बहुत उम्दा ख्याल है
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंशब्दों की मुस्कुराहट पर ...आकर्षण
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