किसी ज़मीन पर , किसी गली में मेरा घर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं
इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं
किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं
एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं
इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं
किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं
एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं