किसी ज़मीन पर , किसी गली में मेरा घर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं
इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं
किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं
एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं
इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं
किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं
एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
उम्दा ख्याल बहुत ही सुन्दरता के साथ लिखी गई बेहतरीन रचना खासकर ये पंक्तियों में तो आपने जान डाल दी है।
जवाब देंहटाएंइकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
हौसला अफ़्ज़ाई का बहुत शुक्रिया ..
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंदो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
दो दिन बाद ही मैं भी नेट पर आई ...ये हमारी वाणी डॉट कॉम को क्या हुआ .ये भी नहीं खुल रही ...चर्चा में शामिल करने का बहुत बहुत धन्यवाद ...
हटाएंएक ज़रा सा दिल दे देते
जवाब देंहटाएंएक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
Jo bhee aap likh rahee hain...lagta hai,mere saaath ghat raha hai...khair behad takleef me...marz lailaj hai...dua karen ki,chalte phirte eeshwarko pyaree ho jaun.
नहीं शमा जी ...इन्सान अपनी विल पॉवर से बड़ी से बड़ी बीमारी भी जीत लेता है ...एक कविता में मैंने लिखा था कि आदमी वक्त से पहले मर जाता है ...जब वो गुलशन से मुंह मोड़ लेता है ...आपको तो साहित्य सेवा का उद्देश्य देकर भगवान ने इस दुनिया में भेजा है ...कलम से बढ़ कर दूसरी सखी नहीं हमारे लिए ..जीवन यात्रा ब्लॉग पर लिखी कुछ पोस्ट्स को पढ़ लीजिये ...शायद मन टिक जाए ...आप अपना ध्यान रखिये ..आपकी सेहत के लिए शुभ कामनाएं ..
हटाएंbahut badhiya...badhai!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ...
हटाएंबहुत बढ़िया ! अंतर्मन की वेदना को उजागर करते ख्यालात को उकेरा है आपने अपनी इस रचना में | ऐसे है ख्यालों को शब्दों का रूप देती रहें |
जवाब देंहटाएंटिप्स हिंदी में : गूगल ऐनालाइटिक को अपने ब्लॉग पर कैसे स्थापित करें
हौसला अफ़्ज़ाई का बहुत बहुत धन्यवाद ...
हटाएंबहुत ही बढियां गजल है..
जवाब देंहटाएंऔर बेहद भावपूर्ण भी...
एक पता अपना भी होता
जवाब देंहटाएंकिसी ज़मीन पर , किसी गली में मेरा घर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं
इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं
हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं
रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं
किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं
एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
एक शैर इस गजल के नाम
नाम था अपना पता भी ,दर्द भी इज़हार भी ,
पर हम हमेशा दूसरों की मार्फ़त समझे गए हैं .
वक्त की दीवार पर पैगम्बरों के लफ्ज़ भी तो ,
बे -ख्याली में घसीटे दस्त खत समझे गए हैं .
होश के लम्हे ,नशे की कैफियत समझे गए हैं ,
फ़िक्र के पंछी ज़मीं के मातहत समझे गए हैं .
बहुत सुन्दर लिखा है वीरेन्द्र जी ..
हटाएंवेदना को व्यक्त करती प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है दर्द छिपाना... उतना ही मुश्किल है... उसे बयाँ करना...
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों में बहुत गहनता है...
~सादर!!!
bahut bahut dhanyvad Anita ji ..baki tippni kartaon ko bhi shukriya..
हटाएंसुन्दर बात
जवाब देंहटाएंसुन्दर कृति. हर पंक्तियाँ दिल को छू गयी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
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