शनिवार, 1 दिसंबर 2012

एक पता अपना भी होता

किसी ज़मीन पर , किसी गली में मेरा घर नहीं 
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं 

इकतरफा है मेरे गालों की लाली 
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं 

हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से 
और टूटने का अब डर नहीं 

रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को 
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं 

किस से कहें कैसी मजबूरी 
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं 

एक ज़रा सा दिल दे देते 
एक पता अपना भी होता 
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से 
मायूस हैं हम , पर नहीं 

20 टिप्‍पणियां:

अरुन अनन्त ने कहा…

उम्दा ख्याल बहुत ही सुन्दरता के साथ लिखी गई बेहतरीन रचना खासकर ये पंक्तियों में तो आपने जान डाल दी है।

इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं

हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
दो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!

kshama ने कहा…

एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
Jo bhee aap likh rahee hain...lagta hai,mere saaath ghat raha hai...khair behad takleef me...marz lailaj hai...dua karen ki,chalte phirte eeshwarko pyaree ho jaun.

devendra gautam ने कहा…

bahut badhiya...badhai!

tips hindi me ने कहा…

बहुत बढ़िया ! अंतर्मन की वेदना को उजागर करते ख्यालात को उकेरा है आपने अपनी इस रचना में | ऐसे है ख्यालों को शब्दों का रूप देती रहें |

टिप्स हिंदी में : गूगल ऐनालाइटिक को अपने ब्लॉग पर कैसे स्थापित करें

शारदा अरोरा ने कहा…

हौसला अफ़्ज़ाई का बहुत शुक्रिया ..

शारदा अरोरा ने कहा…

दो दिन बाद ही मैं भी नेट पर आई ...ये हमारी वाणी डॉट कॉम को क्या हुआ .ये भी नहीं खुल रही ...चर्चा में शामिल करने का बहुत बहुत धन्यवाद ...

शारदा अरोरा ने कहा…

नहीं शमा जी ...इन्सान अपनी विल पॉवर से बड़ी से बड़ी बीमारी भी जीत लेता है ...एक कविता में मैंने लिखा था कि आदमी वक्त से पहले मर जाता है ...जब वो गुलशन से मुंह मोड़ लेता है ...आपको तो साहित्य सेवा का उद्देश्य देकर भगवान ने इस दुनिया में भेजा है ...कलम से बढ़ कर दूसरी सखी नहीं हमारे लिए ..जीवन यात्रा ब्लॉग पर लिखी कुछ पोस्ट्स को पढ़ लीजिये ...शायद मन टिक जाए ...आप अपना ध्यान रखिये ..आपकी सेहत के लिए शुभ कामनाएं ..

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद ...

शारदा अरोरा ने कहा…

हौसला अफ़्ज़ाई का बहुत बहुत धन्यवाद ...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बढियां गजल है..
और बेहद भावपूर्ण भी...

virendra sharma ने कहा…

एक पता अपना भी होता

किसी ज़मीन पर , किसी गली में मेरा घर नहीं
साथ चल रहा है वो मेरे , पर नहीं

इकतरफा है मेरे गालों की लाली
खवाबों-ख़्यालों का कोई ज़र नहीं

हर दिन वो गुजारेगा इसी राह से
और टूटने का अब डर नहीं

रोंयेंगे कितना हाले-सूरत को
उधड़ेंगे , जायेंगे मर नहीं

किस से कहें कैसी मजबूरी
दुनिया में आये अकारथ ,पर नहीं

एक ज़रा सा दिल दे देते
एक पता अपना भी होता
यूँ ही नहीं जाते दुनिया से
मायूस हैं हम , पर नहीं
एक शैर इस गजल के नाम

नाम था अपना पता भी ,दर्द भी इज़हार भी ,

पर हम हमेशा दूसरों की मार्फ़त समझे गए हैं .

वक्त की दीवार पर पैगम्बरों के लफ्ज़ भी तो ,

बे -ख्याली में घसीटे दस्त खत समझे गए हैं .

होश के लम्हे ,नशे की कैफियत समझे गए हैं ,

फ़िक्र के पंछी ज़मीं के मातहत समझे गए हैं .

vandana gupta ने कहा…

वेदना को व्यक्त करती प्रस्तुति

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत मुश्किल है दर्द छिपाना... उतना ही मुश्किल है... उसे बयाँ करना...
आपके शब्दों में बहुत गहनता है...
~सादर!!!

बेनामी ने कहा…

सुन्दर बात

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut bahut dhanyvad Anita ji ..baki tippni kartaon ko bhi shukriya..

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है वीरेन्द्र जी ..

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर कृति. हर पंक्तियाँ दिल को छू गयी.

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

Shikha Kaushik ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं