कैसे मैं पी लूँ फिर हाला
यहाँ नहीं है कोई मीरा
और नहीं है कृष्ण रखवाला
दुख की रात बहुत लम्बी है
और पड़ा है जुबाँ पे ताला
किसने अपना धर्म है छोड़ा
सूरज ,चन्दा ,गगन मतवाला
हम भी आये हैं मन रँग कर
और ओढ़ कर एक दुशाला
जोग ,रोग ,सोग भोग कर
छूटे न अपनी आस का झाला
प्यास सभी को उसी घूँट की
जैसे जीवन हो मधुशाला