शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

रँग होता तो बिखरता भी

रँग होता तो बिखरता भी
जुनूँ होता तो झलकता भी

आओ कोई तो बात करें
गुफ्तगू में वक्त गुजरता भी

नजदीकियों की कहें
करीब हो जो , झगड़ता भी

मजबूर है आदत से परिन्दा
आसमाँ का हाथ पकड़ता भी

आफ़ताब दूर सही
धरती पर कोई चमकता भी

बहाने लाख करे
पहलू में दिल धड़कता भी

रूप दुगना होता
इश्क मय सा छलकता भी

रँग होता तो बिखरता भी
जुनूँ होता तो झलकता भी



यहाँ सुन सकते हैं ....
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रविवार, 9 अक्टूबर 2011

अहसास की कहन

जिसे जी कर लिखा हो वो छन्द कैसे हो
आड़े टेढ़े रास्ते पर चल कर सिर्फ मकरन्द कैसे हो

जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो

अशआर पकड़ते हैं जब जब कलम
अहसास की कहन चन्द कैसे हो

दिया बुझे या जले दिले-नादाँ का
राख तले शोलों की अगन बन्द कैसे हो

गाने लगते हैं सुर में जब जब दर्द-औ-गम
इक सदा गूँजती है मगर दिल बुलन्द कैसे हो

फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो