रात का मुँह देखा तो जानी दिन की अहमियत
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई
लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई
रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई
पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई
लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई
रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई
पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई