क़द से ऊँची है आदमी की अना
ऊँचाई पर भी बौना ही हुआ
नजर-अन्दाज़ करके करते हैं फना
अन्दाज़ कितना शातिराना हुआ
उसके मन की उपज , उसका समाँ
अपना मौसम है जुदा , मेल ही न हुआ
किस से पूछे सवाल अपनी आशना
उसकी आँख का पानी भी अजनबी हुआ
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...