आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया
रात के अन्तिम पहर में जग कर
बैठ सुहागन सर्घी करती
अन्न दही फल मेवा मिष्ठान और नारियल
शगुनों भरी है थाली
करवा-चौथ का व्रत है साजन
अपने प्रिय की है वो प्रेयसि
नस-नस में रँग भरती
निर्जल व्रत है , सोलह श्रृंगार कर
सज-धज कर और थाली सजा कर
सारी सुहागनें बैठ कथा हैं सुनतीं
चाँद की पूजा करने के बाद ही
मुँह में ग्रास वो रखतीं
आशीर्वाद बड़ों से लेकर ,
सीने में खुशियाँ भरतीं
व्रत है या ये कोई पर्व है
रंगों भरा है मेला
मन ही मन फिर कह उठतीं हैं
जन्मों का है साथ सजनवा
चलो पकड़ कर हाथ सजनवा
अपने पिया की हैं वो सुहागन
चाँद भी हामी भरता
आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया
आज का सारा उद्यम पिय के नाम वो करतीं
रात के अन्तिम पहर में जग कर
बैठ सुहागन सर्घी करती
अन्न दही फल मेवा मिष्ठान और नारियल
शगुनों भरी है थाली
करवा-चौथ का व्रत है साजन
अपने प्रिय की है वो प्रेयसि
नस-नस में रँग भरती
निर्जल व्रत है , सोलह श्रृंगार कर
सज-धज कर और थाली सजा कर
सारी सुहागनें बैठ कथा हैं सुनतीं
चाँद की पूजा करने के बाद ही
मुँह में ग्रास वो रखतीं
आशीर्वाद बड़ों से लेकर ,
सीने में खुशियाँ भरतीं
व्रत है या ये कोई पर्व है
रंगों भरा है मेला
मन ही मन फिर कह उठतीं हैं
जन्मों का है साथ सजनवा
चलो पकड़ कर हाथ सजनवा
अपने पिया की हैं वो सुहागन
चाँद भी हामी भरता
आसमाँ में चन्दा ,झिलमिल तारों की छाया
आज का सारा उद्यम पिय के नाम वो करतीं