ताल मिलाती लय भी चलेगी कब तक
हड्डियों में रच बस गया है जो
धुआँ वजूद का हिस्सा है तपेगा कब तक
तन ने कहा ही नहीं मन ने जिया जिसको
कलम के जिम्मे ये सफ़र बतलाओ कब तक
हदें मिटती हैं तो सरहदें टूटती हैं
खानाबदोशों की तरह गम खायेगा कब तक
खुशबुएँ दूर से ही लगतीं अच्छी
ख्यालों में तितलियों को पकड़ पायेगा कब तक
तान टूटे जब भी लय छूटे
जिन्दगी गीत है हर हाल में मुस्कराएगा कब तक
कलम की जगह किसी किसी के लिये अश्कों के जिम्मे भी हो सकता है ये सफ़र !