गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

चार किताबें पढ़ कर

चार किताबें पढ़ कर हम-तुम , क्या विरले हो जाएँगे 

मिटा न पाए मन का अँधेरा, तो क्या उजले हो जाएँगे 


एक अना की ख़ातिर हम तुम ,लड़ लेते बेबात 

मार के डुबकी देखो अन्दर , कितने उथले हो जाएँगे 


कोई छोटा बड़ा न जग में ,

ढाई आखर प्रेम ही सच है ,बाक़ी सारे जुमले हो जाएँगे 


सीरत सदा महकती रहती 

ख़ुशबू का अन्दाज है अपना ,वरना नक़ली गमले हो जाएँगे 


जितना जियें , सच्चा जियें 

 भरपूर जियें , जी खोल जियें 

वरना कंगले हो जाएँगे 


लिखने वाले ने लिख डालीं तक़दीरें 

हम भी कुछ ऐसा लिख डालें , कुछ यादों में संभले रह जाएँगे 

वरना यादों की तस्वीर में हम-तुम धुँधले रह जाएँगे