बहुत कुछ नहीं होगा तेरे मन का , फिर भी तुझे चलना होगा
ये लम्हों का सफ़र सदियों-सदियों का चलना होगा
तुम भूल गए हो के वो दोस्त नहीं है
लब पर आते हुए लफ़्ज़ों को संभलना होगा
तुमको वफ़ा करनी थी इसीलिए की
बेचैनियों के बिस्तर पर रात को ढलना होगा
ज़िन्दगी महज़ ख़्यालों के सिवा कुछ भी नहीं
रोज़ मरते-जीते खुद को ही छलना होगा
छाँव क़िस्मत में होगी तो मिलेगी
हवा का रुख़ मोड़ना परछाइयों से मिलना होगा
मंज़िल थी सामने ही फिर भी पहुँचे न हम कहीं
किसे पता था दिल से दिल तक का सफ़र , मीलों-मील का चलना होगा