मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

मिट्टी में मिल जाने के बाद

रँग लाती है हिना , पत्थर पे पिस जाने के बाद
खुशबू आती है यहाँ , वजूद मिट जाने के बाद

फूलों से पूछो सोये कितना काँटों पर , डाल पर आने के बाद
भूल जायेगी चुभन भी , समय बदल जाने के बाद

ऐ मेरे दिल क्या पायेगा तन्हाई में , अपनों से बिछड़ जाने के बाद
फिर से छायेंगी बहारें , पतझड़ गुजर जाने के बाद

मन्त्र बन जाती है उमँग , कामना के स्वरों से मिल आने के बाद
अँकुरित होता है बीज सदा , मिट्टी में मिल जाने के बाद

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

मैं वो बात नहीं छेड़ूँगी

मैं वो बात नहीं छेड़ूँगी , वो तेरा दिल दुखायेगी
मेरा क्या है , वो तेरे जख्मों को छेड़ जायेगी

बाद मुद्दत के सही , पुरवाई तो चली
थाम लम्हों को , किस्मत तो सँवर जायेगी

मोड़ तो आते हैं , सफर में भी कई
रुक गए तो , तन्हाई भी ठहर जायेगी

भूलता कोई नहीं , रहे अन्जान बेशक
बातों-बातों में , थोड़ी तबियत तो बहल जायेगी

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

कुछ भी नहीं पूछा है उसने

परछाइयों से लड़ बैठी हूँ
अब कोई मुझे बुलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है तुमने
ये कोई मुझे बताये न

दरिया तो पार किया मैंने
अब साहिल पे अटकाये न

पतवारें तो होती बहाना हैं
दम अपना कोई भुलाये न

नहीं पछाड़ा मुझको दरिया ने
किनारे से कोई लड़ाये न

हाय कोई ढाल बनी होती
पानी पर कोई चलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है उसने
परछाईँ सा कोई डराये न

बुधवार, 11 नवंबर 2009

हर हिस्से की धूप तय है

मौसम भी क्या शय है
हर हिस्से की धूप तय है

करता है गुलशन जो बेमानी
पकड़ी जाती है नादानी

जीवन की ये कैसी लय है
छाया की प्यासी मय है

अजीब हादसा है बेनामी
मुँह छिपाए है गुमनामी

सरक जाने का भय है
धूप-छाया की कच्ची वय है

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

पीड़ा कब पढ़ आई हिज्जे

अपनी पीड़ा को बाँधोगे ,सँगीत ,बहर और काफिये में
सैलाब कहाँ बहता है , किनारे समेट के सिम्तों में

बाँधो बाँधो टुकडों में , हवा और आँधियों को
कर लो तुम क़ैद गुबार, धुँए और लपटों को


सरहद बाँधे इन्सानों को , मजहब बाँधे भगवानों को
इश्क की कोई जात नहीं होती , कब बंधता है ये जुबानों में


कभी सजता है बहरूपिये सा , गीतों गजलों की महफ़िल में
भारी पड़ती कायनात पे वो , जो हूक सी उठती है दिल से


पीड़ा कब पढ़ आई हिज्जे , गीत , बहर और काफिये के
सदियों ने पाला है इसको , चढ़ बैठी जो ये हाशिये पे

रविवार, 25 अक्टूबर 2009

जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं

जज्बात हमसे लिखवाते हैं
है कोई न कोई तो बात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


अपने हाथों में जिन्दगी जितनी बच जाये
फिसले जाते हैं दिन रात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


अपना चेहरा ही नहीं जाता है पहचाना
हुई ख़ुद से यूँ मुलाकात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


रोये गाये भारी मन को हल्का करने
उतरे लफ्जों में हैं हालात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


मेरी ही आवाज में सुनने के लिए
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सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

तिनका है बना पतवार कहीं


ले चल मुझको तू पार जरा
तिनका है बना पतवार कहीं

चलना है धारा के सँग-सँग
हूँ बीच नहीं मझधार कहीं


डगमगाया है तूफाँ ने जितना
उतना ही तू दमदार कहीं

चाहत ले आती है रँग इतने
इस रौनक का तू हक़दार कहीं

चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो जरुर
सुबह किनारे की है तरफदार कहीं

जगते बुझते तेरे हौसलों में
चाहत का ही कारोबार कहीं

छोटा अणु ही तो इकाई है
परमाणु का सूत्रधार कहीं

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

दिन है बड़ा मटमैला सा

अब न शाम-सहर
दिन है बड़ा मटमैला सा
उड़ गया चैन मेरे हाथों से
नीँद की ही तरह
अब न शाम- सहर

रातें जो न हों तारों भरी
हम जुगनू लेकर चल लेते
छल करता है सूरज जब-जब
छाया का टुकड़ा दे दे कर
दिन का है कहो , ये कौन पहर
अब न शाम- सहर

दिन कब होते सब एक से हैं
छाया भी यहाँ बेमानी सी लगे
अपना ही आप कहानी सी लगे
किस से मिल कर , ढाया ये कहर
अब न शाम- सहर

रोया था उस दिन आसमाँ भी
आया था जब वो साथ मेरे
पसीजा था तो मेरी ही तरह
बिखरा हुआ , आया था नजर
अब न शाम-सहर


रविवार, 30 अगस्त 2009

सुरुरों ने आ लिखा है

मैंने लिखा नहीं है
सुरुरों ने आ लिखा है

ये बात कह रही है
बरसों से दुनिया सारी
जुनूनों ने आ लिखा है

धड़कन ये कह रही है
उसकी जुबाँ नहीं है
बेजुबानों ने आ लिखा है

जन्मों से चल रहा है
जिसे देख के हैं चलते
उन्हीं रँगों ने आ लिखा है

अपनी खता नहीं है
तुम्हें पा के हम जो खिलते
कुसूरों ने आ लिखा है

मैंने लिखा नहीं है
सुरुरों ने आ लिखा है


शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

ठण्डी हवा के झोंके

ठण्डी हवा के झोंके , छूकर हैं जब गुजरते
छूकर हैं उनको आये , वादों से जो मुकरते

खुशियों के ये इरादे , कैसे सनम पकड़ते
बहती हवा के मानिंद , दामन में न ठहरते

सिर चढ़ के जो बोले , देखो सुरूर चढ़ते
मीठी सी नीँद बन कर , दिल में हैं यूँ उतरते

ठहरा है काफिला भी , देखो इसे गुजरते
खुशबू है पीछा करती , दामन से जो उलझते

ठण्डी हवा के झोंके , छूकर हैं जब गुजरते
गहरी सी टीस बन कर , मौसम को यूँ निगलते


रविवार, 16 अगस्त 2009

जिसकी जितनी झोली

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली

लाख लगे हों दिल पर पहरे , अपनी ही औकात मिली
भर तो लेते दामन अपना , बात नहीं बेबात मिली

चाँद भी उतरा तारे भी उतरे , फ़िर भी न उजली रात मिली
जहन सजाये बैठे हैं हम , यादों की बारात मिली

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता और धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसकी जितनी झोली थी उतनी ही सौगात मिली


बुधवार, 5 अगस्त 2009

रँगीन रेशमी राखी

यूँ तो डोर है रेशम सी
कच्ची नहीं , बन्धन सी
मजबूती इतनी है दुलार की
भाई बहन के प्यार की

कुदरत का नूर बरसाती
इस रास्ते भी , भाई का प्यार सी
एक आँगन में पले
जोड़ती अनूठे सँसार सी

रँगीन रेशमी डोरी
दुआओं का बोलता भण्डार सी
और कलाई पर सजी
रक्षा का वचन उपहार सी


बुधवार, 29 जुलाई 2009

हथेलियों की हिना में मेरा नाम


झाँक आती है लेखनी
उसके दिल में
जो मेरा लगता नहीं कुछ
फ़िर भी बड़ा करीब है
पढ़ आती है उसका दिल
ये उसी राह का मुसाफिर
लगता रकीब
है

तेरी हथेलियों की हिना में मेरा नाम है कि नहीं
तेरी सोचों में मेरी जगह है कि नहीं

हर दिन के साथ मद्धिम होता है रँगे-हिना
मगर वो रूहे-हिना वक़्त को बाँध लेती है
हौसलों को अन्जाम देती है
वही रूहे-हिना मेरे नाम है कि नहीं

मन को चढ़ता है गहरा होता है रँगें-खुशबु-ऐ-वफ़ा
याद दिलाने को है हिना समाँ बाँध लेती है
हाथों को थाम लेती है
वही रँगे-हिना मेरे नाम है कि नहीं


मंगलवार, 21 जुलाई 2009

होता है आदमी भी खुदा

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता

औरों के जख्म-छालों पर
जब वो मरहम रखता होता

दिखता नहीं है कभी खुदा
बेशक उसका ही नजारा होता

नजर नजर का फेर है
जर्रे-जर्रे उसका ही पसारा होता

बहुत दूर नहीं वो हमसे
फैसले की घड़ी में इधर या उधर होता

होता है आदमी भी खुदा
कभी-कभी जब वो इंसाँ होता




शनिवार, 11 जुलाई 2009

तू वफ़ा कर ना कर

तू वफ़ा कर ना कर , मुझको तो वफ़ा की आदत है
ये और बात है कि जफा , रास आती कब है

कैसे चुन लूँ मैं काँटें, चमन की झोली से
गुलाब रह-रह के जब लुभाते हैं

घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
कैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं

बिखरे -बिखरे से वजूद हों जब , उम्मीद की डोरी से सिले जाते हैं
वफ़ा के रँग जो सुबह न सहेजे तो , शाम होते ही गुरबत का गिला करते हैं

इश्क जादू की तरह सर चढ़ता है , बेवफाई अन्धे कुँए में ला पटकती है
ये है दुनिया का चलन , नन्हे जिगर को खिलौना समझती है







शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

जो जी चाहे


जो जी चाहे वो घड़ियाँ याद कर लेना
जो साथ गुजरीं थीं वो कड़ियाँ आबाद कर लेना

१ नहीं मालूम हमको है , कहाँ जाती हैं ये राहें
हमें मालूम इतना है , बड़ी प्यासी हैं ये रूहें
बड़ी प्यासी हैं ये रूहें

२ कहाँ मिट्टी के माधो तुम , कहाँ हूँ मैं भी ठहरी सी
टकरा के किन्हीं नाजुक पलों में , न तन्हाँ छोड़ जाना तुम
न तन्हाँ छोड़ जाना तुम

३ वादे होते हैं सात जन्मों के , इरादे हों वफ़ा के जो
थोड़ी सुबहें , थोड़ी शामें , ये जन्म तो आशना के नाम हो जाए
आशना के नाम हो जाए

रविवार, 28 जून 2009

दुनिया के मेले यूँ गए

दुनिया के मेले यूँ गए हमको तन्हाँ छोड़ कर
भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था

तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था

चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
उसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था

या खुदा इम्तिहाँ न ले , तू मेरा इस मोड़ पर
सिलसिला ये रात दिन का , जख्मों से जुदा न था

शुक्रवार, 19 जून 2009

निशानी तेरी मेरे पास

चेहरा चमकता है सिन्दूरी आभा से
ये ही बेहतर निशानी तेरी मेरे पास

दिलों के मिलने के सबब होते हैं थोड़े
लम्बे रास्तों में जगमगाते हैं साथ-साथ

दूरियाँ कितनी भी हों चाहे भले
फासले दिलों के हों तो कर जाते हैं उदास

जगते मद्धिम दीये हों जैसे
तेरे ख्याल की रोशनी के साथ साथ

दिल को पढना हो पढ़ लो इसी रँग को
चेहरे पे छपा होता है अनगिनत रंगों के साथ


शनिवार, 6 जून 2009

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर
चुन लाये कुछ उजली किरणें
हुस्न के माथे ताज सजे फ़िर
जन्मों का सारा दुःख भूले

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले

वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले


सोमवार, 25 मई 2009

उम्र के हाथों छला गया है

आज का दिन भी नया नहीं है
बचपन याद से गया नहीं है
अल्हड़ है ये अब भी बेशक
उम्र के हाथों छला गया है

मैंने चाहा गीत मैं गा लूँ
सूरज से इक किरण चुरा लूँ
माथे में इक सोच बसा लूँ
अंगने में सूरज जो खड़ा है

प्यार का उबटन , वफ़ा की खुशबू
क्यों न मैं मल-मल के नहा लूँ
मेरा चाँद-खिलौना भी तू
मेरे माथे ताज जड़ा है


बुधवार, 20 मई 2009

भरम न हो तो

वो साथ नहीं आयेगा , साथ चलने का भरम होता है
भरम न हो तो ये दिल तन्हाँ होता है

दिल टूटे या सलामत रहे , भरम को साबुत रख कर
चलने की वजह बनता है

चारों ओर जो तू ही तू है , मेरी हस्ती क्या है
और बता कैसे गुमाँ बनता है

सुबहों को शामों में ढलते देख रही हूँ , दिल जला कर ही सही
मेरे हिस्से में कुछ तो उजाला होगा

मंगलवार, 5 मई 2009

क़दमों में ख़म माँगा


तकता था , सिसकता था
दुनिया ने कहाँ बाँधा ?

जुबाँ को शब्द नहीं थे
शब्दों ने है कुछ बाँचा

अरमानों और हकीकत को
कहाँ कहाँ जाँचा

तेरी उँगली पकड़ने को
तेरा ही साथ माँगा

सर रख के जो ये रोता
कब मिला कोई काँधा

ऊँची-नीची डगर पर
माली ने है कुछ राँधा

सपनों में मेरे आकर
क़दमों में है कुछ बाँधा

रुसवाइयों से डर कर
वीरानों ने समाँ बांधा

अच्छा है कोई नहीं जानता
उपहारों में है क्या बाँधा

उपहारों की गिनती कम है क्या
हौसलों में दम माँगा

अपने ही चलने की खातिर
क़दमों में ख़म माँगा

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

तेरी हर बात

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
कैसे पायेगी सिला
उथली है , उड़ी होती है
ठगे से देखते हैं , पलकें झुकती भी नहीं

कैसे करते हम गिला
वफाओं का बाग़ मिलता नहीं

रूठा रूठा सा चमन
खुशबू का ख्वाब खिलता नहीं

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
देखें किस ओर ले जाती है ये

तेरे झूठे बहानों में
मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है
तेरी हर बात....


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आवाज में

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

मेरे माही ते चानणे दा रँग इक

ये गीत कुछ इस इरादे से लिखा कि पंजाबी का गाना बन सके ....

डीवा बाल के चुबारे उत्ते रक्खाँ
जिया बाल के हनेरे उत्ते रक्खां
मेरे माही ते चानणे दा रंग इक
कदे नच्चाँ ते कदे मैं टप्पाँ


1.ओ चढ़दा ऐ पूरब पासेओं
दिल दी पतली गली दे रा तों
चुम लैन्दा ऐ बदली सारी
मेरे अरमाँ दी बाँ फड़ फड़ के


२.राताँ कट्टा मैं नाले उडीकाँ
पन्गे लवाँ मैं नाल हवावाँ
आसाँ दियाँ पीन्गा पावाँ
माही आवे ते नाल झुलावे


३.शर्म हया दियाँ सारियाँ गल्लाँ
कह छड़दियाँ ने मेरियाँ अक्खाँ
केडे पासे मैं जाके लुक्कां
चारों पासे ने चानणे उसदे



इसका हिंदी अनुवाद है


दिया जला के चौबारे के ऊपर रखूँ

जिया जला के अँधेरे के ऊपर रखूँ
मेरे सनम और उजाले का रंग है एक
कभी नाचूँ और कभी मैं कूदूँ


१. वो चढ़ता है पूरब की ओर से
दिल की पतली गली की राह से
चूम लेता है बदली सारी

मेरे अरमानों की बाँह पकड़ पकड़ के

२.रातें काटूं मैं साथ इंतज़ार के
पन्गे लूँ मैं साथ हवाओं के
आशाओं के झूले डालूँ
सनम आये और साथ झुलाए


३.शर्म हया की सारी बातें
कह देतीं हैं मेरी आँखें
किस तरफ मैं जाकर छुपूँ
चारों ओर हैं उसके उजाले

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

सूरज को अभी देर है

हवा का इक झोँका था , मैनें द्वार तक सजा लिया
सूरज को अभी देर है , तेरे घर तक आने में
इक सपना दिखाने को आँख लगी हो जैसे

ठगे से देखते हैं गुलशन की नाउम्मीदी को
तूने अपनी ही कोई बात कही हो जैसे

रूठा है मेरा अपना ही , मुझसे मेरा सँसार कहीं
तेरी हर पीड़ पराई हो जैसे

झुक जाता है अम्बर भी तो , धरती का तकना बेकार नहीं
छूटे लम्हें पकड़ने को साँस रुकी हो जैसे
सूरज को अभी देर है , तेरे घर तक आने में

मेरी ही आवाज में
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गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

मौसम का तकाजा करना

दो चार गलियाँ घूम लो
फ़िर करके ,
मौसम का तकाजा करना

क्यूँ जुदा थीं अपनी राहें
ये बात ज्यादा करना

वक्त कब रुकता कहीं
गम ज्यादा करना

सीने में दरक गया है कुछ
तुम अन्दाजा करना

ख़ुद से ही बातें करते हैं
मौसम का तकाजा करना

पलकों पे बिठाना तो आता है हमें
तुम नूर की दुनिया से इशारा करना

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

पकड़ा है कस के कल को

आसमान उसका छूटा हुआ है
दिल जिसका टूटा हुआ है

कहर बन कर बरपी है बिजली
अरमानों के दिये बुझ गये हैं

वो उड़ने चला था आसमां में
पँख उसके जख्मी पड़े हैं

ये हवाएँ जो दिखती हैं चुप सी
उसके सीने को नश्तर लगे हैं

उसने पकड़ा है कस के कल को
आज उसके हाथों से छूटा हुआ है

आसमां तो है बाहें फैलाये
परिन्दा अपनी उड़ानों से रूठा हुआ है

सोमवार, 23 मार्च 2009

उपहार की बातें करें

कामना और प्यार के इजहार की बातें करें
लो चले आये हैं वो , उपहार की बातें करें

माँगते रहे जो हम , प्यार को दिलदार को
किस्मत के उसी दुलार की बातें करें
रात-दिन ख़्वाबों में उठते ज्वार की बातें करें

गुनगुनाता है जो मीत , मीत के उस गीत के
स्वरों की झन्कार की बातें करें
शहनाई के उस लाड़ के मधुर सँसार की बातें करें

बुधवार, 11 मार्च 2009

एक किरण आशा की


एक किरण आशा की , सपने हजार लाती है
डूबे हों कितने भी , पल में उबार लाती है

तिनका-तिनका बिखरे हों , जमीं से उखड़े हों
राहगुजर दिखलाती , एक किरण आशा की
मन्डराते बादलों से पँख उधार लाती है
डूबे हों कितने भी , पल में उबार लाती है

बादलों से गुजरे हों , रंग सब बिखरे हों
खुशबू की तूलिका सी , एक किरण आशा की
सुरमई सपनों के मन्जर उतार लाती है
डूबे हों कितने भी , पल में उबार लाती है

तिनकों सा जुड़ती है , हवाओं में घुलती है
सुबह सी सतरंगी ,एक किरण आशा की
दस्तक देते ही सूरज उतार लाती है
डूबे हों कितने भी , पल में उबार लाती है

एक किरण आशा की , सपने हजार लाती है
डूबे हों कितने भी , पल में उबार लाती है

रविवार, 8 मार्च 2009

इक बोल मेरी ओर

वो जो इक बोल मेरी ओर
तुमने उछाला मानों
लपक के पकड़ा मेरे दिल ने
कोई निवाला जानो

बरसा गया कोई बादल
ठण्डी फुहारें मानो
खिल गये फूल और कलियाँ
आईं बहारें जानो

बिना बोले ही तेरी नजरों ने
उछाले दिलासे मानो
झोली भर ली , छंट गये
सारे कुहासे जानो

शनिवार, 7 मार्च 2009

तूफाँ में नहीं हिलना

तूफाँ में नहीं हिलना
तूफाँ के साथ बहना
मुश्किल है मुश्किल में
लहरों को यूँ गिनना

डूबेगा ख़ुद ही तो
अर्जी है भँवर की ये
समँदर की मौजे हैं
किनारे छू के मुस्करायें

मचलें हैं लहरें तो
चंदा से मिलने को
बेशक उनकी भी तो
हर आस अधूरी है

कुछ भी छूटे या रूठे
मौजों के साथ बहना
तरंगें ही जीवन है
हर पल है यही कहना



गुरुवार, 5 मार्च 2009

दुःख गीत ग़ज़ल हो जाता है

दुःख गीत ग़ज़ल हो जाता है
गर दुःख के तराने पर थिरक सकें

.कड़वे शब्दों को देना दावत
इतने मर्जों से बढ़ कर और सजा क्या है
मर्जों की दवा हो जाती है
गर पग-पग घुँघरू झनक सकें

.दुःख इम्तिहान लेता है
मीठे बोलों से बढ़ कर और दुआ क्या है
दिल साजे ग़ज़ल हो जाता है
गर दुःख की तर्ज़ पर खनक सकें

सोमवार, 2 मार्च 2009

कब दूर किनारा है

उफनी हुई नदिया है
और पार उतरना है
बिगड़ी हुई किश्ती है
धारों पे चलानी है

किश्ती की मरम्मत कर
तूफानों से बचानी है
नदिया का रुख देखो
किनारे सँग ले चलती है

विपरीत बहावों में
सँग -सँग भी तो बहना है
रस्सी को ढीला कर
मौका गंवाना है

किश्ती का दम देखो
सागर से बहाना है
चंचल सी लहरों सँग
अठखेलियाँ करना है

उफनी हुई नदिया है
कब दूर किनारा है

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं


गुलाबी गुलाबी रँग अरमानों के
गुलाबी गुलाबी ख्वाब इन्सानों के

.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं
गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है
उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता
चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता

२. बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

बंद गलियों से आगे


बंद गलियों से आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है

तंगहाली ही सब्रोइम्तिहान होता है
राह काँटों से सजी फूल पैगाम होता है

उठते क़दमों से चलने का गुमान होता है
तूफानों के बाद ही आराम होता है

दम लगा कर ही कोई दमदार होता है
तेरा दम भी तेरा मेहनताना होता है

बंद गलियों के आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

दिल सुलगता ही रहा


दिल सुलगता ही रहा
गीली लकड़ियों की तरह

आग लगती है नहीं
चिन्गारी भी मिटती नहीं

सँसार किस तरह दिखे
जब आँख खुलती है नहीं

धुँआ-धुँआ सा अन्दर है
धुँआ-धुँआ है हर कहीं

धुँए के पार दिखता नहीं
आसमाँ की तरफ़ तकते रहे

अपनी दीवारों में क़ैद हो
ख़ुद से गिला करते रहे

टकरा के लौटी है हवा
रास्ता कहाँ हमने रखा

फूलों की डाली कहाँ सजी
दिलवालों की दिवाली कहाँ मनी

हम गीली लकडियाँ लिए
अपना ज़हन सुलगाते रहे

अपनी तपिश से बेखबर
हादसों को जगह देते रहे

धुँए का रुख , आसमान को
हवा की जरूरत हर कहीं

हवाओं का हिस्सा बन जाते गर
जश्न होता हर घड़ी और हर कहीं