रविवार, 25 अक्टूबर 2009

जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं

जज्बात हमसे लिखवाते हैं
है कोई न कोई तो बात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


अपने हाथों में जिन्दगी जितनी बच जाये
फिसले जाते हैं दिन रात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


अपना चेहरा ही नहीं जाता है पहचाना
हुई ख़ुद से यूँ मुलाकात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


रोये गाये भारी मन को हल्का करने
उतरे लफ्जों में हैं हालात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं


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7 टिप्‍पणियां:

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

UMDA RACHNA. BADHAAI.

अजय कुमार ने कहा…

अपना चेहरा ही नहीं जाता है पहचाना
हुई ख़ुद से यूँ मुलाकात
andaz achchha laga

निर्मला कपिला ने कहा…

उतरे लफ्जों में हैं हालात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं
सही है ये अभिव्यक्तियाँ लम्हार ही लिखवाते हैं शुभकामनायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है।
कल सोमवार को इसे चरचा मे देख लीजिए।
http://anand.pankajit.com/

Unknown ने कहा…

आपके जज़्बात बहुत ख़ूब लिखवा लेते हैं आपसे.............

मुबारक हो..........

Dr. Amarjeet Kaunke ने कहा…

bahut hi bhavpurat kavita...congrates....

daanish ने कहा…

रोये गाये भारी मन को हल्का करने
उतरे लफ्जों में हैं हालात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं

pataa nahi kitne hi diloN ki
baat keh di aapne apni iss nazm meiN
rachnaa kaamyaab hai
badhaaee