शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

कोई कोट्ठे तों सूरज

इक्क इक्क दिन मेरा लक्ख लक्ख दा 
पाणी विच लह गया वे माहिया 
इक्क इक्क कदम मेरा मण मण दा 
दिल्ल भुन्जे ढह गया वे माहिया 

साथ अपणे दी तूँ कदर ना जाणी 
कन्न मेरे विच्च कोई कह गया वे माहिया 

सवा सवा लक्ख दी सी धुप्प सुनैरी 
कोई कोट्ठे तों सूरज लै गया वे माहिया 

जिन्हाँ राहाँ दी मैं सार ना जाणी 
ओन्हीं राहीं वे तूँ लै गया वे माहिया 

सलमे-सितारे खाबाँ दी चुनरी 
हत्थ तेरे विच्च , पन्ध किन्ना रै गया वे माहिया 

इक्क इक्क दिन मेरा लक्ख लक्ख दा 
पाणी विच लह गया वे माहिया 
इक्क इक्क कदम मेरा मण मण दा 
दिल्ल भुन्जे ढह गया वे माहिया

रविवार, 19 अगस्त 2012

चाहिये भी क्या

आदमी को चाहिये भी क्या 
एक चुटकी प्यार ही ना 

है चाहतों का ऐसा असर 
नस नस में घुला खुमार ही ना 

गालों पर खिलता गुलाब 
हथेलियों पे रची रँगे-हिना 

बज रहे हैं तार दिल के 
साज दिल का है सितार ही ना 

कौन धड़कनों में शामिल है 
दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना 

रूह से मिटता नहीं उसका ख्याल 
रगों में खून सा शुमार ही ना 

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

ज़िन्दगी की सोहबत


न तुम हमारे , न घर हमारा 
हम ही नादान हैं दिल लगाए हुए  

मजबूर हैं आदत से परिन्दे
तिनकों में हैं खुद को उलझाए हुए

अपनी दुनिया तो अँधेरी है
अपने क़दमों का दम भी भुलाए हुए

हाथ जो झटका तुमने
हैं आसमान तक छिटकाए हुए

हार गईं झूठी तसल्लियाँ
चला रहीं थीं जो भरमाये हुए

ये तो ज़िन्दगी की सोहबत है
सहराँ में है जो फूल खिलाये हुए

चले भी आओ के रुत बदली है
वफ़ा की बात भी है फलक पे छाये हुए