चन्द रोते हुए बच्चों को हँसाया जाये
कुछ इसी तर्ज़ पर ( यूँ तो बहुत चुप रहती हूँ मैं , मगर मेरी लेखनी को सच बोलने की बीमारी है ) । .......
घर से मन्दिर की दूरी तय कर लें
चलो आज किसी का भी दिल न दुखायें
कर्म बन जाते हैं पूजा ही
जो किसी किस्मत को सँवार आयें
न फुर्सत है न चाहत ही है
कभी खुद से भी मिल आयें
भीड़ में भी तन्हा ही हैं
चन्द लम्हें किसी को सुन आयें
कितना बोलती है ये , चलो
यादों की गठरी को कहीं छोड़ आयें