चार किताबें पढ़ कर हम-तुम , क्या विरले हो जाएँगे
मिटा न पाए मन का अँधेरा, तो क्या उजले हो जाएँगे
एक अना की ख़ातिर हम तुम ,लड़ लेते बेबात
मार के डुबकी देखो अन्दर , कितने उथले हो जाएँगे
कोई छोटा बड़ा न जग में ,
ढाई आखर प्रेम ही सच है ,बाक़ी सारे जुमले हो जाएँगे
सीरत सदा महकती रहती
ख़ुशबू का अन्दाज है अपना ,वरना नक़ली गमले हो जाएँगे
जितना जियें , सच्चा जियें
भरपूर जियें , जी खोल जियें
वरना कंगले हो जाएँगे
लिखने वाले ने लिख डालीं तक़दीरें
हम भी कुछ ऐसा लिख डालें , कुछ यादों में संभले रह जाएँगे
वरना यादों की तस्वीर में हम-तुम धुँधले रह जाएँगे



