ले चल मुझको तू पार जरा
तिनका है बना पतवार कहीं
चलना है धारा के सँग-सँग
हूँ बीच नहीं मझधार कहीं
डगमगाया है तूफाँ ने जितना
उतना ही तू दमदार कहीं
चाहत ले आती है रँग इतने
इस रौनक का तू हक़दार कहीं
चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो जरुर
सुबह किनारे की है तरफदार कहीं
जगते बुझते तेरे हौसलों में
चाहत का ही कारोबार कहीं
छोटा अणु ही तो इकाई है
परमाणु का सूत्रधार कहीं