इतने साल इस शहर में बिता कर अब जाने का वक्त हो चला है , सँगी-साथियों से बिछड़ने का वक़्त …
हम तेरे शहर से चले जायेंगे
कितना भी पुकारोगे , नजर न आयेंगे
अभी तो वक़्त है , मिल लो हमसे दो-चार बार और
फिर ये चौबारे मेरे , मुँह चिढ़ायेंगे
भूल जाना जो कभी , दिल दुखाया हो मैंने तेरा
इतने अपने हो , गैर की तरह क्यों दिल दुखायेंगे
धूप ही धूप रही , सफर में अपने बेशक
छाया तेरी भी कभी , हम न भूल पायेंगे
ये दुनिया आबाद रही हमेशा , दोस्ती के रँगों में
महफिले-यारों की सँगत , कहो किधर से लायेंगे
हम तेरे शहर से चले जायेंगे
कितना भी पुकारोगे , नजर न आयेंगे
अभी तो वक़्त है , मिल लो हमसे दो-चार बार और
फिर ये चौबारे मेरे , मुँह चिढ़ायेंगे
भूल जाना जो कभी , दिल दुखाया हो मैंने तेरा
इतने अपने हो , गैर की तरह क्यों दिल दुखायेंगे
धूप ही धूप रही , सफर में अपने बेशक
छाया तेरी भी कभी , हम न भूल पायेंगे
ये दुनिया आबाद रही हमेशा , दोस्ती के रँगों में
महफिले-यारों की सँगत , कहो किधर से लायेंगे