शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

दिन ज़िन्दगानी के चार रे

दिन ज़िन्दगानी के चार रे 
आते न बारम्बार रे 

आज की कदर कर , कल का भरोसा न कोई 
आज पे ही ज़िन्दगी को वार रे 

माँगना न कुछ भी , दिलबर तक है पहुँचने की राह 
आयेगा वो खुद ही तेरे द्वार रे 

पल पल मरना तो , रखता है ज़िन्दगी से कोसों दूर 
ज़िन्दगी के वास्ते कर ले ऐतबार रे 

दिन ज़िन्दगानी के चार रे 
आते न बारम्बार रे