कि बुत हो जाऊँ
तराशे गए हैं अक्स भी
मैं भी सो जाऊँ
सर्द आहों से पलट
जमाने की हवा हो जाऊँ
रूह को छू ले जो
रकीबों सी दुआ हो जाऊँ
कब बदलता है कोई
मैं ही काफिर हो जाऊँ
दर्द किसको नहीं होता
जुदा जिस्मो-जाँ हो जाऊँ
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...